सातवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन (5-9 जून, 2003)
पारामारिबो, सूरीनाम
सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ सुदूर सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो में 5-9 जून, 2003 को हुआ।
इक्कीसवीं सदी में आयोजित यह पहला विश्व हिंदी सम्मेलन था। सम्मेलन के आयोजक थे जानकी सिंह और यह 'विश्व हिंदी - नई शताब्दी की चुनौतियां' विषय पर केन्द्रित था। सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश राज्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने किया। सम्मेलन में भारत से दो सौ प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें बारह से अधिक देशों के हिंदी विद्वान और अन्य हिंदी सेवी सम्मिलित हुए। सम्मेलन का उद्घाटन 5 जून को हुआ था और दशकों पहले इसी दिन सूरीनामी नदी के तट पर भारतवंशियों ने पहला कदम रखा था।
उद्घाटन समारोह
सम्मेलन का उद्घाटन सूरीनाम के राष्ट्रपति श्री रोनाल्डो रोनाल्ड वेनेत्शियान द्वारा किया गया। इस अवसर पर जिन अन्य वक्ताओं ने अभिभाषण दिए उनमें तत्कालीन भारतीय विदेश राज्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह, पोलैंड के विद्वान श्री मारिया क्रिस्तोफ, सूरीनाम की राष्ट्रीय सभा के अध्यक्ष श्री रामदीन सरजू, सम्मेलन के संयोजक श्री जानकीप्रसाद सिंह, अम्ब. कृष्णदत्त नन्दू और सूरीनाम में भारत के राजदूत श्री ओमप्रकाश प्रमुख थे।
समापन समारोह
सूरीनाम के उपराष्ट्रपति श्री रतन कुमार अजोधिया ने सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन के समापन समारोह में उपस्थित रहकर उसकी गरिमा बढ़ाई। भारतीय विदेश राज्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह ने भी समारोह को संबोधित किया।
शैक्षिक सत्र
सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन में जिन शैक्षणिक सत्रों का आयोजन किया गया उनमें हिंदी के आधुनिक स्वरूप की झलक मिलती थी। इन सत्रों के विषय थेः
- विश्व हिंदीः चुनौतियां और समाधान
- हिंदी की बोलियां- सृजनात्मक लेखन
- हिंदी पत्रकारिताः नई शताब्दी की चुनौतियां
- संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी
- हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी
- विदेशों में हिंदी शिक्षण
- भारतीय संस्कृति और हिंदी
- हिंदी अनुवाद की समस्याएं
- भविष्य की हिंदी और हिंदी का भविष्य
प्रदर्शनी
सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान तीन प्रदर्शनियां आयोजित की गईं। इनमें 'हिंदीः हमारी धरोहर' प्रदर्शनी का आयोजन राष्ट्रीय अभिलेखागार ने किया था। संस्कृति विभाग ने भी एक प्रदर्शनी का आयोजन किया जबकि नेशनल बुक ट्रस्ट की ओर से पुस्तक प्रदर्शनी लगाई गई। इस अवसर पर विदेशों में हिंदी लेखन और रचनाकारों पर केंद्रित दो फिल्मों का प्रदर्शन भी किया गया। प्रख्यात कवि-प्राध्यापक-लेखक प्रो. अशोक चक्रधर के संपादन में 'सम्मेलन समाचार' नामक दैनिक न्यूज बुलेटिन का प्रकाशन भी किया गया।
सम्मानित विद्वान
सम्मेलन के दौरान 26 हिंदी सेवियों और विद्वानों को सम्मानित किया गया। इनमें दस भारतीय और सोलह विदेशी विद्वान थे। चार विदेशी और दो भारतीय विद्वान सम्मेलन में उपस्थित नहीं हो पाए।
सांस्कृतिक कार्यक्रम
सम्मेलन के दौरान श्री शेखर सेन द्वारा कबीर और तुलसी पर एकल नाट्य प्रस्तुतियां की गईं। प्रो. शारदा सिन्हा ने पारंपरिक भोजपुरी गायन से समां बांध दिया। श्री मनोज तिवारी ने आधुनिक भोजपुरी गीत प्रस्तुत किए तो श्रीमती सुमित्रा शर्मा ने रामचरित मानस के प्रसंगों तथा श्रीमती महादेवी वर्मा के गीतों पर आधारित कत्थक प्रस्तुति की। निजामी बंधुओं ने कव्वालियां पेश कर माहौल को संगीतमय बना दिया तो दिल्ली के 'ध्वनि' ग्रुप के कलाकारों ने भी सराहनीय कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया।
विशेष
5 जून 2003 को सूरीनाम में भारतवंशियों के आगमन की याद में आयोजित एक कार्यक्रम में विदेश राज्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 'बाबा-माई' की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और एक मार्ग 'हिंदी पथ' का उद्घाटन किया।