बिना मातृभाषा की उन्नति के देश का गौरव कदापि वृद्धि को प्राप्त नहीं हो सकता। - गोविंद शास्त्री दुगवेकर।

श्रोताओं की फब्तियां

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

कवियों की पंक्तियां, श्रोताओं की फब्तियां :

० कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे...... (नीरज)
( तो हम क्या करें, टाइम पर क्यों नहीं आए आप ? )

० जी हां हज़ूर ! मैं गीत बेचता हूं...... (भ० प्र० मिश्र)
( बेचिए जरूर, लेकिन बिक्रीकर का लाइसेंस ले लीजिए हजूर !)

० जाओ, पर संध्या के संग लौट आना तुम...... (सोम ठाकुर )
(शंध्यारानी तो शूटिंग पर गई हैं शोम शाहेब ! )

० भगवान मुझे तुम साली दो...... (गो० प्र० व्यास)
( क्या करोगे ? एक ही बहुत है गुरु !)

० वियोगी होगा पहला कवि...... (पंत जी)
(वियोगी हरि से भी पहले कई कवि हो चुके हैं जी !)

० मशाल जलाओ, बड़ा अंधेरा है...... (शि० मं० सि० सुमन )
(ब्लैक आउट है सुमन जी ! )

० प्रिय, एक बार तुम आ जाओ तो आंचल भर सुहाग ओढूँ...... (माया)
( वे नहीं आएंगे, ओढ़ने को कम्बल भेज दिया है !)

० इस पार प्रिये मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा...... ( बच्चन )
( बुढ़ापा होगा, और क्या होएगा !)

० चल गई...... (शैल चतुर्वेदी)
( अब बन्द करो चलाना, वरना जो थोड़े-बहुत रह गये हैं, वे भी झड़ जाएंगे ! )

० तुम्हारी कसम मैं तुम्हारा नहीं हूं...... (रंग)
(आप हुए भी किसके हैं, श्रीमन् !)

० दरवाजा बन्द किया, खिड़की को खोल लिया...... (स्वामी)
( आपसे और क्या अपेक्षा की जा सकती थी !)

० मेरी नींद चुराने वाले, जा तुझको भी नींद न आए...... ( भारत भूषण )
( नींद की गोलियां खा लेगा तो क्या कर लोगे ?)

० सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात...... (र० ना० अवस्थी )
( अनिद्रा रोग में ऐसा ही होता है तात !)

० नक्शे पर से नाम मिटा दो पापी पाकिस्तान का...... (बालकवि वैरागी)
(जितना बच रहा है, उतना छोड़ दो बेचारे को !)

० सो जा बेटे सो जा, ऐसी कोई बात नहीं है...... (देवराज दिनेश)
( बात कैसे नहीं है, मुझे सब मालूस है डैडी !)

० मैं इसीलिए नित छंद बनाती हूं...... (स्नेहलता )
( कवि सम्मेलनों के मिलें निमंत्रण नित्य। )

० मेरे देश को बचा लो, मेरे प्राण ले लो, रे ..... ( संतोषानन्द )
(की करना है प्राण, मैनूं तो कविता सुणादे कबीराज )

(जय बोलो बेईमान की; 1973)

- काका हाथरसी

 

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