खयालों की जमीं पर मैं हकीकत बो के देखूंगी कि तुम कैसे हो, ये तो मैं ,तुम्हारी हो के देखूंगी
तुम्हारे दिल सरीखा और भी कुछ है, सुना मैंने किसी पत्थर की गोदी में मैं सर रख, सो के देखूंगी
है नक्शा हाथ में लेकिन भटकने का इरादा है तुम्हारे शहर को मैं आज थोड़ा खो के देखूंगी
बड़ी जिद्दी है ये बदली, नहीं गुजरेगी बिन बरसे ये कहती है तुम्हारे साथ मैं भी रो के देखूंगी
हुई धुंधली नज़र ऐसी कि कम दिखते हो ख्वाबों में किसी शब नींद से आंखें मैं अपनी धो के देखूंगी
खुदा कहते हैं क्यों तुमको ये ज़ाहिर क्यों नहीं होता तुम्हारे नाम की सारी सलीबें ढो के देखूंगी
- संध्या नायर, ऑस्ट्रेलिया |