जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

जीवन में नव रंग भरो

 (बाल-साहित्य ) 
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रचनाकार:

 त्रिलोक सिंह ठकुरेला

सीना ताने खड़ा हिमालय,
कहता कभी न झुकना तुम।
झर झर झर झर बहता निर्झर,
कहता कभी न रुकना तुम॥

नीलगगन में उड़ते पक्षी,
कहते नभ को छूलो तुम।
लगनशील को ही फल मिलता,
इतना कभी न भूलो तुम॥

सन सन चलती हवा झूमकर,
कहती 'चलते रहना है।
जीवन सदा संवरता श्रम से,
श्रम जीवन का गहना है॥

प्रकृति सिखाती रहती हर क्षण,
मन में नयी उमंग भरो।
तुम भी उठो , स्वप्न सच कर लो,
जीवन में नव रंग भरो॥

- त्रिलोक सिंह ठकुरेला

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