देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

पत्रकार, आज़ादी और हमला

 (विविध) 
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रचनाकार:

 प्रो. राजेश कुमार

मास्टर अँगूठाटेक परेशानी की हालत में इधर से उधर फिर रहे थे, जैसे कोई बहुत ग़लत घटना हो गई हो, और वे उसे सुधारने के लिए भी कुछ न कर पा रहे हों।

“क्यों परेशान घूम रहे हो? ऐसा क्या हो गया?" लतीपतीराम ने पूछा।

“अरे देखो, कोई पत्रकार आज़ादी से काम भी नहीं कर सकता। पत्रकारों की आज़ादी पर हमला हो रहा है।" मास्टर अँगूठाटेक आवाज़ में दर्द साफ़ झलक रहा था।

“हाँ, देखो तो सही," लतीपतीराम ने संजीदगी से समर्थन किया, "अब उस बेचारे पत्रकार को ही धर लिया, जो दिखा रहा था कि मिड डे मील के पौष्टिक भोजन के नाम पर कैसे बच्चों को रोटी और नमक को दिया जा रहा है।"

"ये तुम क्या कह रहे हो?" मास्टर अँगूठाटेक ने माथे पर सिलवटें डालते हुए पूछा।

“वही, जो आप कह रहे हैं।" लतीपतीराम ने अपनी बात को विस्तार दिया, "पत्रकारों की आज़ादी कहीं नहीं रह गई। पचास लोगों को सिर्फ़ इसलिए गिरफ़्तार कर लिया गया कि वे कोरोना पर सही समाचार दे रहे थे। एक पत्रकार को इसलिए जेल की हवा खानी पड़ी, क्योंकि उसने मुख्यमंत्री के मीम को बस फ़ॉरवर्ड कर दिया था। एक पत्रकार को इसलिए गिरफ़्तार कर लिया, क्योंकि वह रेप के हादसे को कवर करने के लिए जा रहा था। और यहाँ तक कि एक पत्रकार बेचारी की तो हत्या ही कर दी गई, क्योंकि वह सच को सामने लाने की कोशिश कर रही थी। तो मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ कि अब पत्रकार की आज़ादी पर बहुत ज़बरदस्त हमला हो रहा है, और इस मामले में कुछ करने की ज़रूरत है, वरना पत्रकारिता के नाम पर केवल जी-हुजूरी ही बची रह जाएगी।"

“अरे तुम ये किस तरह की बात करने लगे।" मास्टर अँगूठाटेक ने बात को साफ़ करने की कोशिश की, “मैं पत्रकारिता की आज़ादी की बात कर रहा हूँ और तुम उदाहरण दे रहे हो, देशद्रोह के हैं। देशद्रोह के मामलों को देश बर्दाश्त नहीं कर सकता। देश की आज़ादी से कोई समझौता किया जा सकता है। यह क्या कि आपने उठाया अपना पेन और उठाया अपना कैमरा और चल दिए कुछ भी रिपोर्ट करने के लिए। पूछना चाहिए ना कि कौन-सी बात सही है, कौन सी बात ग़लत है, कौन-सी बात देश के हित में है, कौन-सी बात देश के हित में नहीं है, किस बात को रिपोर्ट करना है, किस बात को रिपोर्ट नहीं करना है। यह कोई पत्रकारिता की आज़ादी हुई! यह तो उच्छृंखलता है, उच्छृंखलता!"

“तो फिर आप किसकी बात कर रहे हैं?" लतीपतीराम ने ऐसा दिखाया जैसे बात उनकी पकड़ में नहीं आ रही हो।

“अरे भाई कल हमारे बच्चे मेरे मतलब है कि पत्रकार को पकड़ लिया।" मास्टर अँगूठाटेक ने कहा, “बेचारा अच्छा वाला काम करता है। हमारे आसपास घूमता था। सारी ख़बरें हमारे ही नाम पर चलाता था। हमारे दुश्मनों को कैसे पानी पी-पी के कोसता था, कैसे नाम ले-लेकर उनको ठोका करता था, कैसे हमारे दुश्मनों को बोलने नहीं दिया करता था, कैसे जो हम चाहते थे वही करता था, कैसे असली मुद्दों को भटकाकर फालतू के मुद्दे चलाया करता था। जैसे पहले से ही जान लेता था कि सच्चाई क्या है, कैसे पहले से ही वह फ़ैसला कर देता था कि मामले में कौन दोषी है और कौन निर्दोष है। मैं उसकी बात कर रहा हूँ। यह है पत्रकारिता की आज़ादी पर सीधे-सीधे हमला। मैंने इस बारे में ट्वीट भी कर दिया है कि देश पत्रकारिता पर इस हमले को बर्दाश्त नहीं करेगा। मैंने सभी मंत्रियों आदि को भी कहा है कि वे भी ट्वीट करें और राज्य सरकार के इस ग़लत क़दम के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँ। आखिर कोई हमारा भी कोई कर्तव्य है, पत्रकारिता के प्रति।"

“हाँ, क्यों नहीं।" लतीपतीराम ने विचार करते हुए पूछा, "लेकिन वह पत्रकार तो बहुत बदतमीज है?"

“अरे बच्चों से छोटी-मोटी ग़लती हो ही जाती है, इसका मतलब यह थोड़ी है कि उसे फाँसी पर लटका दोगे।" मास्टर अँगूठाटेक ने अफसोस के साथ कहा, “और देखो वह मामला अभी कोर्ट में है। और कोर्ट में जो मामला होता है, उस पर कोर्ट को ही फ़ैसला कर होता है, उस पर हम अभी कुछ नहीं कह सकते। इस पर भी राज्य सरकार ने उसे उठा लिया, क्योंकि हमें ठीक ठहराने के लिए उसे राज्य सरकार का विरोध करना पड़ा था। भावना में थोड़ा बह गया, तो थोड़ा ज़्यादा ही कुछ कह गया। अब इसकी पूरी गुंजाइश थी कि इसको लेकर वह सरकार हमारे बच्चे को जेल में डाल देगी, क्योंकि ऐसे में हम भी यही करते हैं। इस ख़तरे को देखते हुए हमने वह केस राज्य सरकार से लेकर रातों-रात सीबीआई में दे दिया था, ताकि हमारे बच्चे पर कोई आँच न आए और पूरा मामला हमारी कब्जे में रहे, फिर हम उसे जैसा चाहें मोड़ दें। यहाँ सीबीआई, कोर्ट वगैरह को तो हम देख सकते हैं, राज्य सरकार तो हमारी कुछ सुनती नहीं है, क्योंकि वह हमारी पार्टी की सरकार नहीं है।"

"लेकिन वह पत्रकार तो हत्या के मामले में पकड़ा गया है।" लतीपतीराम ने कहा, "उसका पत्रकारिता से क्या लेना देना?"

“अरे हम नहीं जानते क्या कि ये मामले किस तरह से बनाए जाते हैं।" मास्टर अँगूठाटेक ने ज़ोर देकर कहा, “अब सीधे-सीधे तो पकड़ नहीं सकते किसी मामले में, क्योंकि जल्दी से बेल हो जाएगी। इसलिए उखाड़ लिए गड़े मुर्दे। और मामला भी देखो कितने साल पुराना है। तब वहाँ हमारी सरकार थी, तो हमने उस मामले को रफा-दफा भी करवा दिया था। लेकिन उन्होंने फिर से उसे उखाड़ लिया, और बच्चे को पकड़कर ले गए।"

“लेकिन जब मामला कोर्ट में है, तो आप कोर्ट को ही फ़ैसला क्यों नहीं करने देते।" लतीपतीराम ने तंज कसते हुए कहा, “अगर निर्दोष होगा तो बाहर आ जाएगा, और अगर दोषी है तो उसे बाहर आने का कोई अधिकार नहीं।"

“अरे वह तो हम कुछ-न-कुछ करके उसे बाहर निकाल ही लेंगे।" मास्टर अँगूठाटेक ने पूरे विश्वास के साथ कहा, “लेकिन आप जानते नहीं कि जब तक हम उसे निकालेंगे, उस बेचारे की पूरी इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी। उसका सारा बिज़नेस चौपट हो जाएगा। तब तो वो हमारे भी किसी काम का नहीं रहेगा, इसलिए मुझे थोड़ी चिंता है कि फिर हमें कोई दूसरा आज़ाद पत्रकार ढूँढ़ना पड़ेगा, जो सही ढंग से हमारे इशारों पर पत्रकारिता कर सके।"

आज़ाद पत्रकारिता की नई परिभाषा लतीपतीराम को समझ में नहीं आ रही थी। उन्होंने सोचा कि थोड़ा समय लेकर अपनी समझदारी का विकास किया जाए और उसके बाद ही बात को आगे बढ़ाया जाए।

-प्रो. राजेश कुमार

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