अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

इश्क और वो इश्क की जांबाज़ियाँ | ग़ज़ल

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk

इश्क और वो इश्क की जांबाज़ियाँ
हुस्न और ये हुस्न की दम साज़ियाँ

वक्ते-आख़्रिर है, तसल्‍ली हो चुकी
आज तो रहने दो हेलाबाज़ियाँ

गैर हालत है तेरे बीमार की
अब करेंगी मौत चारासाज़ियाँ

'अश्क' क्या मालूम था, रंग लायेंगी
यों तबीयत की तेरी नासाज़ियाँ

-उपेद्रनाथ अश्क

विशेष : अश्क जी किसी ज़माने में उर्दू में ग़ज़ल कहा करते थे लेकिन कॉलेज के दिनों में ही ग़ज़ल छोड़कर कहानी लिखने लगे थे।

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