चुप क्यों न रहूँ हाल सुनाऊँ कहाँ कहाँ जा जा के चोट अपनी दिखाऊँ कहाँ कहाँ
जो देखा है अच्छा हो उसे दिल भी न जाने इस जी की बात जा के चलाऊँ कहाँ कहाँ
रोने में, क्या धरा है भूतकाल था भला किस किस गली में उस को बुलाऊँ कहाँ कहाँ
तुम कहते हो तो ठीक, मुझे जीना ही होगा यह भी जरा समझा दो कि जाऊँ कहाँ कहाँ
मैं क्या करूँ, सुनती है अगर दुनिया तो सुन ले तुम सीमा मत रचो कि मैं गाऊँ कहाँ कहाँ
जो मेरे दिल का भेद है व' भेंद ही रहे मैं उस को सब की आँख में लाऊँ कहाँ कहाँ
क्या गम जो स्व॒र उठे तो कहीं जा के रहेंगे इस दर्द की लहर को छिपाऊँ कहाँ कहाँ
सुन आए है बनी जो, वे बिगड़ी भी सुनेंगे उम्मीद पर ही साज बजाऊँ कहाँ कहाँ
मानस तो हैं लेकिन कही रस होता त्रिलोचन मैं जी की ज्वाल जा के बुझाऊँ कहाँ कहाँ
-त्रिलोचन |