व्याकरणाचार्यों से दीक्षा लेकर नहीं कोशकारों के चेले बनकर भी नहीं इतिहास से भीख माँगकर तो कतई नहीं
नए शब्दों के लिए नापनी होंगी दिशाएँ फाँकने पड़ेंगे धूल सहने पड़ेंगे शूल
अभी निहायत अपरिचित, उदास, एकाकी शब्दों की उपस्थिति नहीं हुई है कविता में
अभी पराजय की घोषणा न की जाए मुठभेड़ों की आवाजें आ ही रही हैं छन-छनकर क्या पता किसी के पास बची हो एकाध गोली क्या पता आखिरी गोली से टूट जाए कारागृह का ताला और फिर बंदीगण सूरज नहीं आ सकता हर किसी के आँगन में सुबह होते ही किरणें बराबर आती रहें पूरब की ओर हों आपके घर के दरवाजे खिड़कियाँ
माँओं की गोद में आना बाकी है अंतिम बच्चा चिड़ियों को याद है अभी भी गीत की एक कड़ी लड़ाकुओं ने चलाया नहीं है अंतिम अस्त्र कुछ सपने अभी भी कुँआरे हैं हवाओं में भटक रहे हैं फिर ऐसे में कैसे हो सकती है दैत्य की विजय
-जयप्रकाश मानस |