एक पतंग नीले आकाश में उड़ती हुई, मेरे कमरे के ठीक सामने खिड़की से दिखता एक पेड़, अचानक पतंग कट कर वहाँ अटक गयी।
नीचे कितने ही लूटने वाले आ गए क्योंकि-- पतंग की किस्मत है कभी कट जाना कभी लुट जाना कभी उलझ जाना कभी नुच जाना कभी बच जाना कभी छिन जाना कभी सूखी टहनियों पर लटक जाना।
टूट कर गिरी तो झपट कर तार-तार कर देना। हर हाल में लालची निगाहें मेरा पीछा करती है।
कहीं मैं नारी तो नहीं?
-डॉ मृदुल कीर्ति ऑस्ट्रेलिया |