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संत पलटूदास गुरु की महिमा का गुणगान करते हुए कहते हैं:
आपै आपको जानते, आपै का सब खेल।पलटू सतगुरु के बिना, ब्रह्म से होय न मेल॥
पलटू उधर को पलटिगे, उधर इधर भा एक।सतगुरु से सुमिरन सिखै, फरक परै नहिं नेक॥
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