गांधीजी को भारत ही नहीं पूरा विश्व ‘महात्मा गांधी' कहता है। पिछले कई वर्षों में यह प्रश्न बार-बार पूछा गया है कि गांधी जी को ‘महात्मा' की उपाधि किसने दी। उन्हें महात्मा की उपाधि ‘किसने, कब और कहाँ दी' इस विषय में कई लोगों ने सूचना के अधिकार (RTI) के अंतर्गत भी यह प्रश्न उठाया।
यह प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें भारत के दो महान व्यक्तित्व सम्मिलित है और यह मामला गुजरात के उच्च न्यायालय में भी पहुंचा। इसपर गुजरात के न्यायालय ने अपना निर्णय भी दिया था। गुजरात हाई कोर्ट ने फरवरी 2016 में अपने एक फैसले में कहा था कि मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा (Mahatma) की उपाधि रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) ने दी।
अनेक लोगों द्वारा सूचना के अधिकार का उपयोग करते हुए, इसी प्रकार के प्रश्न किए गए थे। सूचना के अधिकार के उत्तर में भारत सरकार ने एक आरटीआई (RTI) लगाने वाले राजू माल्थुमकर (Raju Malthumkar) ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के अंतर्गत प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को पूछा था कि मोहनदास करमचंद गांधी को कब और क्यों महात्मा कहा गया? प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के अधिकारियों द्वारा इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए इसे इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च (ICHR), भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (NAI) और पुरातत्व विभाग को स्थानांतरित कर दिया गया था।
इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च ने राजू माल्थुमकर को उत्तर देते हुए बताया कि इस मामले में उनके पास कोई दस्तावेजी जानकारी उपलब्ध नहीं है। यहाँ तक कि भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार ने भी कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
क्या सचमुच इस बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी और तथ्य उपलब्ध नहीं हैं? आइए, इसपर शोध कर देखें की क्या जानकारी और तथ्य उपलब्ध हैं:
उपर्युक्त विषय में तीन मत सामने आते हैं :
प्रथम मत अधिकतर यह बताया जाता है कि 12 अप्रैल 1919 को रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने गांधीजी को 'महात्मा' कहकर संबोधित किया था। तभी से गांधीजी को 'महात्मा' कहा जाने लगा।
भारत की पाठ्य पुस्तकों में यह उल्लेख मिलता है कि नोबेल पुरस्कार विजेता रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) ने 1919 में गांधीजी को पत्र में ‘महात्मा' संबोधित किया था।
तथ्य
यह तथ्य प्रमाणित है कि रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 12 अप्रैल 1919 को लिखे अपने पत्र में गांधीजी को प्रत्यक्ष रूप से 'महात्मा' कहकर संबोधित किया था लेकिन परोक्ष रूप से रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इससे कई वर्ष पहले, 18 फरवरी 1915 को चार्ली एंड्रूस (C F Andrews) को लिखे एक पत्र में पहली बार गांधीजी को ‘महात्मा' संबोधित किया है। यह पत्र उन्होंने 18 फरवरी 1915 को कलकत्ता से लिखा था। इस पत्र में वे ‘महात्मा' और श्रीमती गांधी के बोलपुर और शांतिनिकेतन पहुँचने की बात कर रहे हैं। यद्यपि गांधीजी 17 फरवरी 1915 को पहली बार शांतिनिकेतन गए लेकिन रबीन्द्रनाथ टैगोर उस समय वहाँ न होकर, कलकत्ता में थे। इस बात की पुष्टि रबीन्द्रनाथ टैगोर के चार्ली एंड्रूस को लिखे पत्र और गांधीजी के तिथिवार जीवन-वृतांत (सम्पूर्ण गांधी वाङ्ग्मय) में हो जाता है। इसमें फरवरी 17 के अंतर्गत लिखा है, "बोलपुर पहुंचे। सी॰ एफ॰ एंड्रूस से मिले। भारतीय रीति से स्वागत किया गया। उस दिन रवीन्द्रनाथ वहाँ नहीं थे।"
गांधीजी 17 फरवरी 1915 को शांतिनिकेतन में दिए गए अपने भाषण में कहते हैं, "आज मुझे जो आनंद हो रहा है, उसका मैंने पहले कभी अनुभव नहीं किया। यद्यपि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ यहाँ उपस्थित नहीं हैं तथापि अपने हृदयों में हम उन्हें विद्यमान पाते हैं।"
17 फरवरी 1915 को शांतिनिकेतन में आए गांधी जी, 20 फरवरी 1915 तक पहली बार शांतिनिकेतन में रहे। 20 फरवरी को वे पूना के लिए रवाना हो गए।
6 मार्च 1915 को गांधीजी जब दूसरी बार शांतिनिकेतन आए, तब पहली बार दोनों महान विभूतियों का साक्षात्कार हुआ। अतः गांधीजी 17 फरवरी 1915 को पहली बार शांतिनिकेतन अवश्य गए लेकिन रबीन्द्रनाथ टैगोर से उनका मिलना पहली बार 6 मार्च 1915 को ही हो पाया। इस बार गांधी जी 11 मार्च तक शांतिनिकेतन में रहे। 11 मार्च को उन्होंने प्रस्थान किया। इसकी पुष्टि भी तिथिवार जीवन-वृतांत (सम्पूर्ण गांधी वाङ्ग्मय) में हो जाती है।
यह रोचक है कि उपर्युक्त पत्र में रबीन्द्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को 1915 में ‘महात्मा’ संबोधित किया लेकिन इसके पश्चात अप्रैल, 1919 से पहले वे उन्हें प्रत्यक्ष पत्रों में 'मि. गांधी' ही लिखते रहे। 12 अप्रैल 1919 को लिखे पत्र पश्चात उनका सम्बोधन 'महात्माजी' ही देखने को मिला।
यदि हम रबीन्द्रनाथ टैगोर के सी॰ एफ॰ एंड्रूस को 17 फरवरी 1915 लिखे पत्र को भी पहली बार गुरुदेव द्वारा गांधीजी को 'महात्मा' कहा मान लेते हैं तब भी यह रोचक है कि टैगोर के गांधी जी को ‘महात्मा' कहे जाने से पहले उन्हें 27 जनवरी को 1915 को गोंडल में औपचारिक तौर पर ‘महात्मा' की उपाधि दी जा चुकी थी। कृपया अगले मतों को देखिए।
द्वितीय मत जनवरी, 1915 में गोंडल की सुप्रसिद्ध रसशाला के वैद्यराज जीवराम कालीदास शास्त्री ने गांधीजी को 'महात्मा' की पदवी से विभूषित किया था। उन्हें गोंडल में औपचारिक रूप से ‘महात्मा' की पदवी दी गई थी।
तथ्य 27 जनवरी को 1915 को गोंडल की सुप्रसिद्ध रसशाला में गांधीजी के अभिनंदन और उन्हें सम्मानित करने का आयोजन था। इस आयोजन में 5 हज़ार लोग आए थे जिनमें एक हज़ार महिलाएं सम्मिलित थीं। गांधीजी सपरिवार इस आयोजन में आए थे।
यह आयोजन राज्य के दीवान रणछोड़दास वृन्दावनदास पटवारी की अध्यक्षता में हुआ। वैद्यराज जीवराम कालीदास शास्त्री, जो संस्कृत और आयुर्वेद के विद्वान थे, ने गांधीजी के सम्मान में मानपत्र पढ़ा और उन्हें ‘अभिनंदनपत्र' और ‘महात्मा' की पदवी भेंट की।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की त्रैमासिक पत्रिका (भाग-55, संख्या 3) में कैलाशनाथ महरोत्रा के आलेख ‘राष्ट्रपिता गांधीजी को ‘महात्मा' की उपाधि' आलेख में इस आयोजन की विस्तृत पुष्टि होती है।
गांधीजी को यह मानपत्र चाँदी की मंजूषा में रखकर भेंट किया गया था। पूरा जनसमुदाय, ‘गांधीजी की जय' का उद्घोष कर रहा था।
गांधीजी के भारत लौटने पर उन्हें ‘अभिनंदनपत्र' भेंट करके सम्मानित करने वाली पहली संस्था गोंडल की रसशाला ही थी। गांधी जी ने इस अवसर पर भाषण में इस सम्मान के लिए आभार भी जताया और ‘सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय' (भाग 13) में 27 जनवरी 1915 के इस आयोजन का उल्लेख भी मिलता है।
रसशाला औषधाश्रम, गोंडल, 1948 में मूल गुजराती में भी इस आयोजन का विवरण मिलता है।
पृष्ठभूमि इंग्लैंड से भारत लौटने पर गांधीजी ने अपनी वकालत आरंभ की। गांधी जी ने 18 जुलाई 1914 को दक्षिण अफ्रीका छोड़ा और वे अपने राजनीतिक गुरु गोखले को मिलने इंग्लैंड गए। गांधीजी कई मास इंग्लैंड रहे और 9 जनवरी 1915 को बंबई पहुंचे। भारत पहुँचने पर वे राजकोट, पोरबंदर इत्यादि कि यात्रा पर गए। 24 जनवरी को गोंडल (काठियावाड़ की एक रियासत) पहुंचे व वहाँ चार दिनों तक रहे। इसकी सूचना रियासत के गणमान्य को मिल गई थी।
गांधीजी के आगमन की पूर्व-सूचना, राज्य के दीवान रणछोड़दास वृन्दावनदास पटवारी तथा वैद्यराज जीवराम कालीदास शास्त्री, को मिल ही चुकी थी। वे गांधीजी के दक्षिण अफ्रीका के कामों, प्रवासी भारतीयों के प्रति हो रहे अन्याय के विरुद्ध उनके संघर्ष व उनकी सफलता से बहुत प्रभावित हुए थे। उनका मानना था कि गांधीजी का वह अनुभव और कार्य भारत को लाभान्वित कर सकते हैं। गांधीजी को ‘महात्मा' की पदवी से विभूषित करने का निर्णय लिया गया। उन्हें सम्मानित करने के लिए एक अभिनंदनपत्र छपवाया गया और निश्चय हुआ कि 27 जनवरी को 1915 को गोंडल की रसशाला में गांधीजी को सम्मानित किया जाए।
इस बीच गांधीजी ने गोंडल में अनेक आयोजनों व कार्यक्रमों में भाग लिया। 24 जनवरी को गोंडल के रेलवे स्टेशन पर उनका भव्य स्वागत हुआ। स्टेशन पर भरी जनसमूह उनके स्वागत के लिए आया हुआ था। उन्हें चार घोड़ोंवाली बग्गी में बैठाकर ले जाया गया। रास्ते में गोंडल के महाराज भी उनसे भेंट करने पहुंचे।
25 जनवरी को गांधीजी ने अनेक उच्चाधिकारियों और विशिष्ट व्यक्तियों से भेंट की।
26 जनवरी को गांधीजी के सम्मान में गोंडल के राजभवन में महाराज भगवत सिंह ने एक भोज का आयोजन किया।
उपर्युक्त सभी तथ्यों की पुष्टि गांधीजी के तिथिवार जीवन-वृतांत (सम्पूर्ण गांधी वाङ्ग्मय) में होती है।
तृतीय मत हरिद्वार के निकट कनखल स्थित गुरुकुल कांगड़ी में अप्रैल, 1915 को गांधीजी का सम्मान समारोह आयोजित किया गया जिसमें उन्हें ‘महात्मा' की उपाधि प्रदान की गई थी।
तथ्य हम इस जानकारी की पुष्टि कर सकते हैं कि गांधीजी के सम्मान में एक आयोजन हुआ था लेकिन इसमें उन्हें महात्मा कि उपाधि भी दी गई थी, इसके साक्ष्य हमारे पास अभी उपलब्ध नहीं हैं। यदि ये साक्ष्य मिल भी जाएँ तो क्योंकि यह आयोजन अप्रैल, 1915 को हुआ था तो इससे पहले गांधीजी को 27 जनवरी, 1915 गोंडल में ‘महात्मा' का पद दिया ही जा चुका था।
चतुर्थ मत गांधीजी को महात्मा के सम्बोधन को लाकर सौराष्ट्र के एक अज्ञात पत्रकार का उल्लेख भी किया जाता है। इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने गांधीजी को अफ्रीका में एक अज्ञात पत्र भेजा था और इस पत्र में इस पत्रकार ने गांधीजी को ‘महात्मा' संबोधित किया था।
तथ्य इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती। इस पत्र की जानकारी, भेजने वाले के नाम के अभाव के कारण इस मत को आगे खोजना संभव न होगा।
निष्कर्ष
सभी मतों, साक्ष्यों व तथ्यों का अध्ययन करने पर स्पष्ट तौर पर प्रमाणित हो जाता है कि 27 जनवरी को 1915 को गोंडल की सुप्रसिद्ध रसशाला में गांधीजी औपचारिक तौर पर ‘महात्मा' की उपाधि दी गई थी। इसके साक्ष्य और सम्पूर्ण विवरण उपलब्ध हैं।
यदि हम रबीन्द्रनाथ 'टैगोर' के 'सी॰ एफ॰ एंड्रूस' को 17 फरवरी 1915 को लिखे पत्र को पहली बार गुरुदेव द्वारा गांधीजी को 'महात्मा' कहा मान लेते हैं, तब भी यह रोचक है कि टैगोर के 'गांधीजी' को ‘महात्मा' कहे जाने से पहले उन्हें 27 जनवरी 1915 को गोंडल में औपचारिक तौर पर ‘महात्मा' की उपाधि दी जा चुकी थी।
1914 के अंत तक गांधीजी को 'मिस्टर गांधी' ही जाना जाता था। इस बात की पुष्टि आचार्य कृपलानी के आलेख, 'महात्मा और गुरुदेव' (Mahatma and Gurudev) में होती है। इन सभी तथ्यों की पुष्टि गांधीजी के सम्पूर्ण गांधी वाङ्ग्मय में भी होती है। 1914 गांधीजी पर पांडेय लोचन प्रसाद शर्मा की कविता 'कर्मवीर मिस्टर गाँधी' भी यह प्रमाणित करती है कि भारत में आने से पूर्व गांधीजी 'मिस्टर गांधी' ही संबोधित किए जाते थे।कर्मवीर मिस्टर गांधी - बापू पर लिखी गई सर्वप्रथम हिंदी कविता कही जा सकती है।
रबीन्द्रनाथ टैगोर गांधीजी को 'महात्मा' कहने वाले पहले व्यक्ति नहीं थे लेकिन उनके गांधीजी को 'महात्मा' कहने के पश्चात गांधीजी 'महात्मा' के रूप में भारत और विश्वभर में प्रसिद्ध हुए, यह अवश्य सही जान पड़ता है।
-रोहित कुमार 'हैप्पी'
सन्दर्भ:
Andrews, C. F. (1973). Representative Writings. National Book Trust, India.
Bharat-Darshan, Online Hindi Magazine. (1997). भारत-दर्शन ऑनलाइन हिंदी पत्रिका. https://www.bharatdarshan.co.nz/
Bhattacharya, S. (1997). THE MAHATMA AND THE POET (1st ed.). National Book Trust.
Chaturvedi, B., Sykes, M., & Gandhi, M. K. (2010). Charles Freer Andrews: A Narrative. Kessinger Publishing, LLC.
Dalāla, C. B. (1971). Gandhi: 1915-1948. Gandhi Peace Foundation.
Gandhi Centenary Volume. (1969). Vishwa-Bharati Shantiniketan, West Bengal.
Gandhi, M. (1964). THE COLLECTED WORKS OF MAHATMA GANDHI (January 1915 -October 1917) (Volume 13). Publications Division, Government of India.
Gandhi, M. K., & Narayan, S. (1968). The Voice of Truth. The Selected Works of Mahatma Gandhi. Volume IV. Navajivan Publishing House.
Tagore, R., Prabhu, R. K., & Kelekar, R. (1961). Truth Called Them Differently. Penguin Random House.
कैलाशनाथ महरोत्रा, ‘राष्ट्रपिता गांधीजी को ‘महात्मा' की उपाधि', हिन्दी साहित्य सम्मेलन त्रैमासिक पत्रिका, (भाग-55, संख्या 3), प्रयाग।
सम्पादक की टिप्पणी यहाँ गांधीजी को दी गई पदवी की पीडीऍफ़ कॉपी देखी जा सकती है।
"कर्मवीर मिस्टर गांधी" बापू पर लिखी गई सर्वप्रथम हिंदी कविता कही जा सकती है। लोचन प्रसाद ने 1914 में शायद भविष्य पढ़ लिया था और 'मिस्टर एम. के. गांधी' में 'राष्ट्रपिता' देख लिया था।
लोचन प्रसाद पाण्डेय (4 जनवरी, 1887 - 18 नवम्बर, 1959 ) हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। इन्होंने हिंदी एवं उड़िया दोनों भाषाओं में काव्य किया। |