एक बार शिव शम्भू को लगी ज़ोर की भूख भीषण तप से गया कंठ का हलाहल तक सूख !
देखा, चारों ओर बर्फ ही बर्फ, दिखी पथराई ! पार्वती के चूल्हे में भी अग्नि नहीं दिखाई !
"तुम जो तप में डूबे स्वामी मैं भी ध्यान में खोई दोनों ऐसे लीन हुए कि सूनी रही रसोई।"
दूध चढ़ाने वाले आये लाये भांग, धतूरा ! शिव ने आधे मन से खाया पेट भरा ना पूरा !
बोले गौरा से प्रभुवर-- "चलो घूम कर आएं! देखें धरती पर लोगों ने क्या पकवान बनाए!
सावन का मौसम है बनते होंगे पुआ औ' पकोड़े, थोड़ी देर में लौट आएंगे चख कर थोड़े-थोड़े।"
कैलाशी उतरे भूमि पर चले शहर की ओर, चांद छुपाया बालों में कि होने को थी भोर !
थोड़ी दूर चले होंगे एक सिसकी पड़ी सुनाई ! आगे देखें! भूखे शिव पर कैसी विपदा आयी?
देखा, एक नन्हा-सा बच्चा सुबक-सुबक रोता था ! मट मेले, रूखे गालों को आँसू से धोता था !
माँ उसकी, ऐसे सोई ज्यूं जग से हुई पराई! रोने से मुर्दा तन में कब सुधि लौट कर आई?
छोटे-छोटे हाथ माँ को बार-बार झकझोरे, नन्ही सिसकी रुक आये छलके नैन कटोरे !
माँ फिर भी ना आंखें खोले ना मुंह से कुछ बोले, भूखा बच्चा सिसक-सिसक आंचल रहा टटोले !
शिव के लिए कहां है जग की बात कोई अनूठी ? जीवन और मरण से जाना एक जान फिर छूटी !
पर गौरा से बच्चे के आँसू देखे ना बन पाए, नन्हे को गोदी में लेके लगी स्नेह बरसाए !
गौरा ने ममता का आंचल बच्चे पर फैलाया दूध पिलाया जी भर के, बच्चे को समझाया !
"मुन्ना, मैं तो परबत पर रहती हूँ शिव के साथ, तेरे सर पर जाती हूं रख कर अपना हाथ!"
बच्चे ने गौरा की उंगली कस कर पकड़ी ऐसे! मुझ को रोता छोड़, जगत से जाओगी अब कैसे?
शिव को देखा गौरा ने हो कर भाव विभोर, "एक खिलौना ला दो शंकर मांगू ना कुछ और।"
हाथ जोड़ कर बोली "हे देव मदद को जाओ एक खिलौना ला दो मुन्ने का मन बहलाओ।"
"ना कोई है साथी इसका ना बाबा, ना भैया मुर्दा तन से लिपट लिपट रोए था मैया-मैया!"
"जो मिल जाए कोई खिलौना मुन्ने को पकड़ाऊं-- माँ तो छूट चली इस जग से मैं भी मुक्ति पाऊं!"
गौरा के आतुर आँसू शिव पर पड़ गए भारी! खेल खिलौना कहां से लाएं? सोए सब व्यापारी!
भूखे पेट चले थे घर से खाने को पकवान! देखो, कैसे चक्कर में उलझ गए भगवान!
विकल हो गए शंकर जब विकल हो गई नारी! झुनझुन नहीं मिला तो डमरू दे बैठे त्रिपुरारी !!
बच्चे ने झट छीन लिया प्रभु का नाद खिलौना! डुग डुग डुग डुग लगा बजाने भूल गया सब रोना!
नाद सुना डमरू का शिव पर मस्ती छायी! आखों में उन्माद चढ़ा पैरों में थिरकन आयी। खोल जटायें शकर नाचे भूल गए संसार !! आज सुबह के साथ, जगत में जागेगा संहार !!
गौरा ने झट छीन लिया बच्चे से भीषण बाण कहां उचित है एक रोये तो सृष्टि दे बलिदान !!
शिव को लेकर लौट गई गौरा अपनी ठोर दोनों डूबे ध्यान में जग में हो गई भोर
पर कहते है उस साल जगत में फैली थी महामारी ! जिस दम भूखे बच्चे संग, भूखे नाचे थे त्रिपुरारी !!
- संध्या नायर, मेलबर्न ईमेल : sandhyamordia@gmail.com |