हाय! जननी जन्मभूमि छोड़कर जाते हैं हम, देखना है फिर यहाँ कब लौट कर आते हैं हम। स्वर्ग के सुख से भी ज्यादा सुख मिला हम को यहाँ, इसलिए तजते इसे, हर बार शर्माते हैं हम। ऐ नदी-नालो! दरख्तो! पक्षियो! मेरा कसूर, माफ करना, जोड़ कर तुम से फर्माते है हम। माँ! तुझे इस जन्म में कुछ सुख न दे पाए कभी, फिर जनम लेंगे यहीं, यह कौल कर जाते हैं हम।।
-राम प्रसाद बिस्मिल
[बिस्मिल ने उपरोक्त पंक्तियाँ उन्होंने 'जननी-जन्मभूमि' के प्रेम मे सराबोर होकर फाँसी की कोठरी में लिखी थी।] |