यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।

ज़िंदगी तुझे सलाम

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड

सोचा था अभी तो बहुत कुछ करना बाक़ी है
अभी तो घर भी नहीं बसाया
ना ही अभी किसी को अपना बनाया।

अभी तो किसी को यह भी नहीं बताया कि हमें भी किसी की तलाश है
ना ही अभी दूसरों को अपनाने की कला सीखी।

अभी तो अपने किए पर पछतावा करना आया नहीं
ना ही अभी अपनी ग़लतियों को सुधारने की अदा सीखी।

अब तक तो सिर्फ़ हमने अपनी ही उपलब्धियों पर जश्न मनाया है
किसी को अपने से भी आगे बढ़ते देख कर ख़ुशियाँ मनाने का जोश नहीं आया।

अभी तो बहुत कुछ करना बाक़ी है ज़िंदगी
मौत के बुलावे पर ध्यान देने का मौक़ा आया ही नहीं।

--डा॰ पुष्पा भारद्वाज-वुड

 

Back

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें