पथ की बाधाओं के आगे घुटने टेक दिए अभी तो आधा पथ चले! तुम्हें नाव से कहीं अधिक था बाहों पर विश्वास, क्यों जल के बुलबुले देखकर गति हो गई उदास, ज्वार मिलेंगे बड़े भंयकर कुछ आगे चलकर-- अभी तो तट के तले तले! सीमाओं से बाँध नहीं पाता कोई मन को, सभी दिशाओं में मुड़ना पड़ता है जीवन को, हो सकता है रेखाओं पर चलना तुम्हें पड़े अभी तो गलियों से निकले! शीश पटकने से कम दुख का भार नहीं होगा, आँसू से पीड़ा का उपसंहार नहीं होगा, संभव है यौवन ही पानी बनकर बह जाए अभी तो नयन-नयन पिघले!
-दुष्यंत कुमार |