विदेशी भाषा के शब्द, उसके भाव तथा दृष्टांत हमारे हृदय पर वह प्रभाव नहीं डाल सकते जो मातृभाषा के चिरपरिचित तथा हृदयग्राही वाक्य। - मन्नन द्विवेदी।

सुजीवन

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 सियाराम शरण गुप्त | Siyaram Sharan Gupt

हे जीवन स्वामी तुम हमको
जल सा उज्ज्वल जीवन दो!
हमें सदा जल के समान ही
स्वच्छ और निर्मल मन दो!

रहें सदा हम क्यों न अतल में,
किंतु दूसरों के हित पल में
आवें अचल फोड़कर थल में;
ऐसा शक्तिपूर्ण तन दो!

स्थान न क्यों नीचे ही पावें,
पर तप में ऊपर चढ जावें,
गिरकर भी क्षिति को सरसावें
ऐसा सत्साहस धन दो!

-सियारामशरण गुप्त

 

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