सूनापन रातों का, और वो कसक पुरानी देता है टूटे सपने,बिखरे आँसू,कई निशानी देता है
दिल के पन्ने इक-इक करके खुद-ब-खुद खुल जाते हैं हर पन्ने पर लिखकर फिर वो,नई कहानी देता है
उसके आने से ही दिल में,मौसम कई बदलते हैं सूखे बंज़र गलियारों में,रंग वो धानी देता है आँखों में ऐसे ये डोरे,सुर्ख उतर कर आते हैं जैसे मदिरा पैमाने में,दोस्त पुरानी देता है उसकी यादों का जब मेला,साथ हमारे चलता है टूटे-फूटे रस्तों पर भी,एक रवानी देता है पास वो आके कुछ ही पल में,जाने की जब बात करे झील सी गहरी आँखों में वो,बहता पानी देता है
-डॉ० भावना कुँअर सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) |