जाने-पहचाने पेड़ से फल के बजाय टपक पड़ता है बम काक-भगोड़ा राक्षस से कहीं ज्यादा खतरनाक
अपना ही साया पीछा करता दीखता किसी पागल हत्यारे की तरह नर्म सपनों को रौंद-रौंद जाती हैं कुशंकाएँ वालहैंगिंग की बिल्ली तब्दील होने लगती है बाघ में
इसके बावजूद दूर-दूर तक नहीं होता कोई शत्रु वही आदमी मरने लगता है जब खौफ़ समा जाता है मन में
-जयप्रकाश मानस [ अबोले के विरुद्ध, शिल्पायन प्रकाशन, दिल्ली ] |