जयशंकर प्रसाद की अनेक लघु गद्य रचनाएं हैं जो लघुकथाएं ही कही जयशंकर प्रसाद की अनेक लघु गद्य रचनाएं हैं जो लघुकथाएं ही कही जाएंगी। उस समय लघुकथा अस्तित्व में नहीं थी यथा इन्हें लघुकथा परिभाषित नहीं किया गया। आज जब लघुकथा की विधा पर शोध हो रहा है तो जयशंकर प्रसाद की इन लघु रचनाओं को भी 'हिन्दी की पहली लघुकथा' की दौड़ में सम्मिलित किया गया है। निसंदेह जब 'पर्सड ने इन रचनाओं की लिखा तो उस समय इन्हें 'लघुकथा' का नाम देना संभव नहीं था।
'प्रसाद' की पुस्तक 'प्रतिध्वनि' में उनकी 15 लघुकथाएँ संकलित की गई हैं। इस पुस्तक की भूमिका में इन रचनाओं को 'लघुकथा' नहीं कहा गया क्योंकि उस समय इन्हें कथा-कहानी की श्रेणी में ही प्रस्तुत किया गया था:
"श्री प्रसाद जी की सर्वप्रथम कहानियों का संग्रह ‘प्रतिध्वनि' में है । हिन्दी की नवीन युग की कहानियों का सूत्रपात इन्हीं रचनाओं से हुआ था। अपने समय के साहित्य को पीछे रख कर प्रसाद जी ने इसमें नई कला, नई अनुभूति और नवीन युग के नवीन दृष्टिकोण को मूर्त किया था। क्रमशः अपनी महान प्रतिभा से वे अपने साहित्य और उससे भी अधिक अपनी मातृभाषा को अधिक से अधिक ऊँचे स्तर पर ले गये, परन्तु ‘प्रतिध्वनि' का महत्व कभी भी कम न होगा क्योंकि हम लोग अपने नये साहित्य के प्रथम प्रभात की उष्ण, स्निग्ध और कोमल किरणों का आनन्द इसके द्वारा आज भी पा सकेंगे।" [प्रतिध्वनि, लीडर प्रेस, इलाहबाद]
जयशंकर प्रसाद की इन रचनाओं को 'भारत-दर्शन' के पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें हर्ष हो रहा है।
- रोहित कुमार 'हैप्पी' |