राम तजूँ पै गुरु न बिसारूँ, गुरु के सम हरि कूँ न निहारूँ ।। हरि ने जन्म दियो जग माहीं। गुरु ने आवा गमन छुटाहीं ।। हरि ने पाँच चोर दिये साथा। गुरु ने लई छुटाय अनाथा ।। हरि ने रोग भोग उरझायो। गुरु जोगी करि सबै छुटायो ।। हरि ने कर्म मर्म भरमायो। गुरु ने आतम रूप लखायो ।। फिरि हरि वध मुक्ति गति लाये। गुरु ने सब ही भर्म मिटाये ।। चरन दास पर तन-मन वारूँ। गुरु न तजूँ हरि को तजि डारूँ ।।
- सहजोबाई
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