प्यार! कौन सी वस्तु प्यार है? मुझे बता दो। किस को करता कौन प्यार है ? यही दिखा दो।।
पृथ्वीतल पर भटक भटक समय गँवाया! ढूँढा मैंने बहुत प्यार का पता न पाया ।।
यों खो कर के अपना हृदय, पाया मैंने बहुत दुख। पर यह भी तो जाना नहीं, होता है क्या प्यार-सुख।।
-पं० रामचन्द्रजी शुक्ल (सरस्वती)
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