अकबर का है कहाँ आज मरकत सिंहासन? भौम राज्य वह, उच्च भवन, चार, वंदीजन;
धूलि धूसरित ढूह खड़े हैं बनकर रजकण, बुझा विभव वैभव प्रदीप, कैसा परिवर्तन?
महाकाल का वक्ष चीरकर, किंतु, निरंतर, सत्य सदृश तुम अचल खड़े हो अवनीतल पर;
रामचरित मणि-रत्न-दीप गृह-गृह में भास्वर, वितरित करता ज्योति, युगों का तम लेता हर;
आज विश्व-उर के सिंहासन में हो मंडित, दीप्तिमान तुम अतुल तेज से, कान्ति अखंडित;
वाणी-वाणी में गंजित हो बन पावन स्वर, आज तुम्हीं कविश्रेष्ठ अमर हो अखिल धरा पर!
- सोहनलाल द्विवेदी
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