जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

क्या मैं परदेसी हूँ ?

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra

धवल सिन्ध-तट पर मैं बैठा अपना मानस बहलाता
फीजी में पैदा हो कर भी मैं परदेसी कहलाता

यह है गोरी नीति, मुझे सब भारतीय अब भी कहते
यद्यपि तन मन धन से मेरा फीजी से ही है नाता

भारत के जीवन से फीजी के जीवन में अन्तर है
भारत कितनी दूर वहाँ पर कौन सदा जाता आता

औपनिवेशिक नीति गरल है, नहीं हमें जीने देती
वे उससे ही खुश रहते हैं जो उनका यश है गाता

भारतीय वंशज पग-पग पर पाता है केवल कंटक
जंगल को मंगल करके भी दो क्षण चैन नहीं पाता

साहस है, हम सब सह लेंगे हम भयभीत नहीं होंगे
पता नहीं कब गति बदलेगा कालचक्र जग का त्राता ।

- पं॰ कमला प्रसाद मिश्र
[ 1913 -1995 ]

 

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