मैं मंदिर का दीप तुम्हारा। जैसे चाहो, इसे जलाओ, जैसे चाहो, इसे बुझायो,
इसमें क्या अधिकार हमारा? मैं मंदिर का दीप तुम्हारा।
जस करेगा, ज्योति करेगा, जीवन-पथ का तिमिर हरेगा,
होगा पथ का एक सहारा! मैं मंदिर का दीप तुम्हारा।
बिना स्नेह यह जल न सकेगा, अधिक दिवस यह चल न सकेगा,
भरे रहो इसमें मधुधारा, मैं मंदिर का दीप तुम्हारा।
- सोहनलाल द्विवेदी |