वही टूटा हुआ दर्पण बराबर याद आता है उदासी और आँसू का स्वयंवर याद आता है
कभी जब जगमगाते दीप गंगा पर टहलते हैं किसी सुकुमार सपने का मुक़द्दर याद आता है
महल से जब सवालों के सही उत्तर नहीं मिलते मुझे वह गाँव का भीगा हुआ घर याद आता है
सुगन्धित ये चरण, मेरा महक से भर गया आँगन अकेले में मगर रूठा महावर याद आता है
समन्दर के किनारे चाँदनी में बैठ जाता हूँ उभरते शोर में डूबा हुआ स्वर याद आता है
झुका जो देवता के द्वार पर वह शीश पावन है मुझे घायल मगर वह अनझुका सर याद आता है
कभी जब साफ़नीयत आदमी की बात चलती है वही 'त्यागी' बड़ा बदनाम अक्सर याद आता है
-रामावतार त्यागी
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