आज जो ऊँचाई पर है क्या पता कल गिर पड़े इतना कह के ऊँची शाख़ों से कई फल गिर पड़े
साँस की पायल पहन कर ज़िंदगी निकली तो है क्या पता कब टूट कर ये उस की पायल गिर परे
ये भी हो सकता है पत्थर फेंकने वालों के साथ उन का पत्थर ख़ुद उन्हें ही कर के घायल गिर पड़े
सर पे इतना बोझ और पाँव में इतनी ठोकरें अच्छा-ख़ासा आदमी भी हो के पागल गिर पड़े
चार पल को हम भी इस दुनिया की आँखों में 'कुँवर' बन के आँसू आए थे और बन के बादल गिर पड़े
- कुंवर बेचैन |