क्या संसार में कहीं का भी आप एक दृष्टांत उद्धृत कर सकते हैं जहाँ बालकों की शिक्षा विदेशी भाषाओं द्वारा होती हो। - डॉ. श्यामसुंदर दास।

इसको ख़ुदा बनाकर | ग़ज़ल

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 विजय कुमार सिंघल

इसको ख़ुदा बनाकर उसको खुदा बनाकर 
क्यों लोग चल रहे हैं बैसाखियां लगाकर

दो टूक बात कहना आदत-सी हो गई है
हम उनसे बात करते कैसे घुमा-फिराकर

चेहरों का एक जमघट आंखों के सामने है
हम कैसे भाग जाएं सबसे नज़र बचाकर

जो तुझ को देके गाली हरदम पुकारता है
कहता है कौन तुझसे उसके लिए दुआ कर

बाहर की रोशनी तो बाहर की रोशनी है
रोशन तू अपने अंदर एहसास का दिया कर

-विजय कुमार सिंघल

 

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