कुंभनदास जी गोस्वामी वल्लभाचार्य के शिष्य थे। इनकी गणना अष्टछाप में थी। एक बार इन्हें अकबर के आदेश पर फतेहपुर सीकरी हाजिर होना पड़ा।
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अकबर ने इनका यथेष्ठ सम्मान किया, तो भी इन्होंने इसे समय नष्ट करना समझा। बादशाह ने जब इनका गायन सुनने की इच्छा जताई तो इन्होंने यह भजन गाया:
"संतन का सिकरी सन काम ॥ टेक ॥ आवत जात पनहियाँ टूटीं, बिसरि गयो हरि नाम॥ जिनको मुख देखे दु:ख उपजत, तिनको करनी परी सलाम। कुंभनदास लाल गिरधर बिन और सबै बे-काम॥"
सदैव परम दरिद्री रहने पर भी इन्होंने कभी किसी राजा-महाराजा से धन लेना स्वीकार नहीं किया।
प्रस्तुति: रोहित कुमार 'हैप्पी'
[भारत-दर्शन संकलन]
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