यह कैसे संभव हो सकता है कि अंग्रेजी भाषा समस्त भारत की मातृभाषा के समान हो जाये? - चंद्रशेखर मिश्र।
चने का लटका | बाल-कविता (बाल-साहित्य )    Print this  
Author:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra

चना जोर गरम।
चना बनावैं घासी राम।
जिनकी झोली में दूकान।।
चना चुरमुर-चुरमुर बोलै।
बाबू खाने को मुँह खोलै।।
चना खावैं तोकी मैना।
बोलैं अच्छा बना चबैना।।
चना खाएँ गफूरन, मुन्ना।
बोलैं और नहिं कुछ सुन्ना।।
चना खाते सब बंगाली।
जिनकी धोती ढीली-ढाली।।
चना खाते मियाँ जुलाहे।
दाढ़ी हिलती गाहे-बगाहे।।
चना हाकिम सब खा जाते।
सब पर दूना टैक्स लगाते।।
चना जोर गरम।।

- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें