( १)
प्यारे वतन हमारे प्यारे, आजा, आजा, पास हमारे । या तू अपने पास बुलाकर, रख छाती से हमें लगाकर ॥
( २)
जब तू मुझे याद आता है, तब दिल मेरा घबराता है । आँख आँसू बरसाती है, रोते रोते थक जाती है ॥
( ३)
तुझसे जो आराम मिला है, दिल पर उसका नक्श हुआ है । उसे याद कर मैं रोता हूँ, रो रोकर आँखे धोता हूँ ।।
( ४)
कच्चा घर जो छोटा-सा था, पक्के महलो से अच्छा था । पेड़ नीम का दरवाज़े पर, सायबान से था वह बेहतर ।।
( ५)
सब्ज़ खेत जो लहराते थे, दिल को वे कैसे भाते थे । फर्श मखमली जो बिछते है, नहीं मुझे अच्छे लगते हैं ॥
( ६)
वह जंगल की हवा कहाँ है ? वह इस दिल की दवा कहाँ है? कहाँ टहलने का रमना है ? लहरा रही कहाँ जमना है ? ।।
( ७)
वह मोरों का शोर कहाँ है ? श्याम घटा घनघोर कहाँ है? कोयल की मीठी तानो को, सुन सुख देते थे कानो को ।।
(८)
ज्यो ही आम पेड़ से टपका, मै फौरन लेने को लपका । चढा उचक कर डाली डाली, खाई जामन काली काली ।।
(९)
जब यह मुझे याद आता है, नहीं मुझे तब क़ुछ भाता है । वे दिन क्या फिर कभी मिलेगे? क्या फिर अपने दिन पलटेंगे? ।।
(१०)
वे लंगोटिये यार कहाँ हैं? वे सच्चे ग़मख्वार कहाँ हैं? वह घर वह बैठक मन भाई, क्या फिर कभी मिलेगी भार्ड ? ।।
( ११)
आँख-मिचौनी की वे घातें, खेल-कूद के दिन और रातें। हाय कहाँ है ! हाय कहाँ हैं! कहाँ मिलें जो ढूँढा चाहें? ।।
( १२)
बिछडा वतन हुआ यह बेजा, फटता है सुब किये कलेजा । ठाठ अमीरी के सब तुझ पर, मिले अगर तू, करै निछावर ।।
- महावीर प्रसाद द्विवेदी फरवरी १९०६ [द्विवेदी काव्यमाला]
|