यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद। 

कठपुतली (बाल-साहित्य )    Print this  
Author:त्रिलोक सिंह ठकुरेला

ठुमक-ठुमक नाचे कठपुतली 
सबके मन को मोहे।
रंग बिरंगे सुन्दर कपड़े 
उसके तन पर सोहे॥

हाथ नचाती, पैर नचाती, 
रह रह कमर घुमाती। 
नये नये करतब दिखलाकर 
सबका मन बहलाती॥

उसे थिरककर नचा रहे हैं 
आशाओं के धागे। 
सपनों के नव पंख लगाकर 
बढ़ती जाती आगे॥ 

तुम भी व्यर्थ सोचना छोड़ो
मिलकर खुशी मनाओ।
जीवन का हर दिन उत्सव है, 
झूमो, नाचो, गाओ॥

-त्रिलोक सिंह ठकुरेला

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