अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
कुछ कर न सका  (काव्य)    Print this  
Author:हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan

मैं जीवन में कुछ कर न सका 
जग में अंधियारा छाया था, 
मैं ज्वाला ले कर आया था, 
मैंने जलकर दी आयु बिता, पर जगती का तम हर न सका । 
मैं जीवन में कुछ कर न सका ! 

बीता अवसर क्या आएगा, 
मन जीवन-भर पछताएगा, 
मरना तो होगा ही मुझको, जब मरना था तब मर न सका । 
मैं जीवन में कुछ कर न सका !

-हरिवंशराय बच्चन 

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