पड़ोसी
मेरे घर के ठीक बगल में हैं उनके घर पर नहीं जानता मैं उनके बारे में ज़्यादा कुछ
उनकी हँसी-खुशी उनकी रुदन-उदासी की डोरी से नहीं बँधा हूँ मैं
मेरी कहानियों के पात्र वे नहीं हैं उनके गीतों की लय-तान मैं नहीं हूँ
एक खाई है जो पाटी नहीं गई मुझसे एक सफ़र है जिसे हम अकेले ही तय करते हैं
आते-जाते हुए अकसर हम एक-दूसरे की ओर केवल परस्पर अभिवादन के काग़ज़ी हवाई जहाज़ उड़ा देते हैं
मिलना तो ऐसे चाहिए मुझे उनसे जैसे चीनी घुल-मिल जाती है पानी में पर महानगर की मुखौटों वाली जीवन-शैली पहाड़ बन सामने खड़ी हो जाती है
मुखौटों वाली इसी जीवन-शैली से है मेरी पहली लड़ाई बाक़ी के युद्ध तो मैं बाद में लड़ लूँगा
-- सुशांत सुप्रिय
बीस बरस पहले की फ़ोटो
जान क्या तुम्हें याद है हमारी बीस बरस पहले की वह फ़ोटो
आज भी सुरक्षित है वह फ़ोटो मेरे ऐल्बम में उस फ़ोटो में आज भी जवाँ हैं बीस बरस पहले की हमारी हसरतें हमें अपने होनेपन की सुगंध में भिगोती हुई
इस फ़ोटो में नहीं ढले हैं हम वक़्त के निर्मम हाथों से हम हैं दूर लगातार फैलती झुर्रियों और निरंतर बढ़ते चश्मे के नम्बर यहाँ नहीं कर पाए हैं खुद पर ग़ुरूर
मैं इस फ़ोटो से जलता हूँ मैं इस फ़ोटो को चाहता हूँ मैं इस फ़ोटो को देख मचलता हूँ मैं इस फ़ोटो पर रीझता हूँ
बीस बरस पहले की खो गई दुनिया में जाने का चोर-द्वार है यह फ़ोटो तन की सूखती नदियों और पिघलते ग्लेशियरों को स्मृतियों में फिर से जिलाने का एक अध-सच्चा क़रार है यह फ़ोटो
-- सुशांत सुप्रिय
तुम्हें याद करना
तुम्हें याद करना जैसे किसी ख़ूबसूरत पेंटिंग की गहराई में गोता लगाना
तुम्हें याद करना जैसे किसी सुखद ख़्याल को सोचते हुए सो जाना जैसे किसी लोक-गीत की मिठास में खो जाना
तुम्हें याद करना जैसे धरती पर मीठे पानी के कुओं के बारे में सोचना तुम्हें याद करना जैसे अपनी आवश्यकता के ऊपर दूसरों की ज़रूरत को धरना
तुम्हें याद करना जैसे धरती की सबसे अच्छी लोक-कथाओं का अंतस में तिरना तुम्हें याद करना जैसे जाति-धर्म की दीवारों का भड़भड़ा कर गिरना
तुम्हें याद करना जैसे कड़ाके की ठंड में गुनगुनी धूप का सेवन करना तुम्हें याद करना जैसे जाड़े के मौसम में गुड़ की डली को मुँह में भरना
-- सुशांत सुप्रिय A-5001, गौड़ ग्रीन सिटी, वैभव खंड, इंदिरापुरम ग़ाज़ियाबाद -201014 ( उ. प्र. ) मो: 8512070086 ई-मेल : sushant1968@gmail.com |