अंगारों पर आँसू बोयें इस बस्ती के लोग
कबीरा खैर मनाए।
जग के सारे रिश्ते नाते दो अंकों का योग
कबीरा खैर मनाए।
पत्थर पूजें, गंगा पूजें, पूजें चाँद सितारे
मस्जिद, मंदिर, गुरूद्वारों में भटकें भाग्य के मारे
तिलक लगाएँ, माला फेरें, अंग लगाएँ भोग
कबीरा खैर मनाए।
झूठी छाया, झूठी काया, झूठी चाँदी-सोना
रैन-बसेरा पल दो पल का साँस सिर्फ़ खिलौना
आशा, अभिलाषा, उम्मीदें सब जीवन के रोग
कबीरा खैर मनाए।
माटी ओढ़ी, माटी पहनी, माटी रूप संवारा
बिलख रहीं आवारा गलियाँ दिल जोगी बंजारा
बहुरूपी विश्वास जगत का धुंधला जोग वियोग
कबीरा खैर मनाए।
आती जाती साँस बाँधती जीने की आशाएँ
तपती रेत, उजागर सूरज सहमी अभिलाषाएँ
वचन, कर्म का पुण्य लगाए पापों पर अभियोग
कबीरा खैर मनाए।
कौन लिखे बहती धारा पर लाज अमर वाणी की
पाषाणों का मौन पी गई मर्यादा पानी की
मिलना और बिछड़ना टूटी साँसों का संयोग
कबीरा खैर मनाए।
-नसीर परवाज़
[गीत थकी साँसों के ]