हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।

परिंदा (कथा-कहानी)

Print this

Author: सुनीता त्यागी

आँगन में  इधर उधर फुदकती हुई गौरैया अपने बच्चे को उड़ना सिखा रही थी। बच्चा कभी फुदक कर खूंटी पर बैठ जाता तो कभी खड़ी हुई चारपायी पर, और कभी गिर कर किसी सामान के पीछे चला जाता। 

संयोगिता अपना घरेलू काम निपटाते हुई, ये सब देखकर मन ही मन आनन्दित हो रही थी। उसे लग रहा था मानो वह भी अपने बेटे रुद्रांश के साथ लुका-छिपी खेल रही है।

आँखों से ओझल हो जाने पर जब गौरैया शोर करने लगती तब संयोगिता भी डर जाती कि रुद्रांश ही कहीं गुम हो गया है, और घबराकर वह गौरैया के बच्चे को श..श. करके आगे निकाल देती। 

बच्चा अब काफी उड़ना सीख गया था और अब की बार वह घर की मुंडेर पर जाकर बैठ गया था। अगले कुछ पल बाद उसने ऐसी उड़ान भरी कि वह दूर गगन में उड़ता ही चला गया। 

गौरैया उसे ढूंढ रही थी, और चीं- चीं, चूं - चूं के शोर से उसने पूरा घर सिर पर उठा लिया। 

सन्तान के बिछोह में चिड़िया का करुण क्रन्दन देखकर संयोगिता का दिल भी धक से बैठ गया। वो भी एक माँ है ना! ...और उसके बेटे रुद्रांश ने भी विदेश जाने के लिये पासपोर्ट बनवा लिया है और अब कई दिनों से अमेरिका का वीजा पाने के प्रयास में लगा है।

-सुनीता त्यागी
राजनगर एक्सटेंशन, गाजियाबाद, भारत
ई-मेल: sunitatyagi2014@gmail.com 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश