जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

पगडंडी में पहाड़ | यात्रा वृतांत (विविध)

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Author: जय प्रकाश पाण्डेय

“पगडंडी में पहाड़” जय प्रकाश पाण्डेय कृत एक यात्रा वृतांत है जिसमें उत्तराखंड के सुरम्य पर्वतीय अंचलों, पहाड़ों, झरने, उछलते कूदते नदी नाले, वहां के सीधे साधे लोगों की कहानी है। हिमालय प्रारम्भ से ही मानव सभ्यता एवं संस्कृति का उद्गगम रहा है । मानव के मान अभियान एवम दर्प को चूर्ण करने वाला हिमालय प्रकृति की श्रेष्ठतम कृति है। हिमालय देखने में जितना विशाल है यह उतना ही शीलवान, सुकोमल, सुंदर एवम मानव के दिलों को सबसे ज्यादा लुभाने वाला है। इसने मानवीय सभ्यताओं को विकसित करने के साथ उसके  मनोभावों को जागृत करने का सबसे बड़ा उपक्रम रहा है। हिमालय की वादियों का एक-एक पत्थर, चट्टान बोलता है। चीड़ देवदार के पेड़ों की प्रत्येक पत्ती शरारत करती है और इसकी हरियाली आपमें प्राण डाल देती है। झरने गीत गाते है, हवाएं संगीत देती है, पुष्प मुस्कराते है और विस्तृत फैली वादियाँ बाहें फैलाये सदियों से न जाने किसका इंतजार कर रही है।  इन पर्वतों की कंदराओं में तो जीवन बिताया जा सकता है। न जाने कितनी सदियों का साक्षी ये कंकड़ पत्थर हमसें बात करना चाहते है। आवश्यकता है कि जीवन की भागदौड़ से कुछ पल चुराकर इनके साथ गुजारा जाए, इनसे बात की जाए। 

Pagdandi Mein Pahad

“पगडंडी में पहाड़” पुस्तक में लेखक इन्हीं पगडंडियों में वन-वन घुमा है, गाँवों में रुका हैं और इसकी ताजगी को महसूस किया हैं। जहाँ एक ओर वह बुलंद चोटियों से प्रभावित हुआ है वही छोटे-छोटे ककड़ों पत्थरों से प्यार किया है। पुस्तक में इन पगडंडियों से चलते आप उत्तराखंड की सुंदरता के साथ साथ वहां के लोगों के साथ लोक संस्कृति से भी परिचित होते है। पहाड़ों की रानी मसूरी से लेकर  नागटिब्बा, मुनस्यारी और फूलों की घाटी तक की दुनिया एक नई दुनिया है जिसे जानकर आप इसमें डूबे बिना नही रह सकते। गढ़वाल और कुमायूं के इतिहास से लेकर भूगोल से सम्पूर्ण परिचय ही नही होता वरन किताब के माध्यम से आप उत्तराखंड में और उत्तराखंड आपमें रच-बस जाता है। पुस्तक में कुल 19 अध्याय हैं—

पहाड़ों की रानी मसूरी, झड़ीपानी फाल, संगम फाल, मौसी फाल, शिखर फाल एवम ओल्ड राजपुरा रोड, गिलोगी पॉवर हाउस और भट्टा फाल, परी टिब्बा, विनोग नेचर रिसोर्ट, जबरखेत नेचर रिजर्व, मसूरी में एक दिन- नाग मंदिर से बुद्ध मंदिर तक, भदराज मंदिर, मसूरी के पार खट्टा पानी---- लेदुर, कोल्टी गाँव तक, सरकुंडा एवम धनौल्टी, सहस्त्र धारा, नाग टिब्बा, कुमायूं दर्शन, चार धाम यात्रा, हेमकुंड साहिब एवम फूलों की घाटी, बर्फ का शहर मुन्सियारी – उत्तराखंड का कश्मीर।

मसूरी का एक दृश्य पुस्तक में इस प्रकार उद्दृत हैं-– “कुलरी बाजार से लाइब्रेरी चौक तक का रोड कैमल बैक रोड के नाम से जाना जाता है यहाँ पर अंग्रेजों के समय के अनेक ग्रेवयार्ड स्थित है। यहाँ से सूर्यास्त का नज़ारा देखने लायक होता है। जाड़ों की शाम के समय क्षितिज पर लाल रंग की गहरी रेखा पूरे आसमान पर फ़ैल जाती है, जिसे विंटर लाइन के नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि विश्व में स्विट्ज़रलैंड के बाद मंसूरी में ही विंटर लाइन का मनमोहक नज़ारा देखा जा सकता है। पूरा आसमान आग के एक बड़े गोले की परिधि से घिर जाता है। जिसके चटख लाल रंगों के साथ नीले बैकग्राउंड पर सफेद तैरते बादलों की छटा देखते ही बनती है।”

हिमालय के उत्तुंग शिखर धर्म और आध्यात्म की उद्गम स्थल रहे है। प्रकृति के मनमोहक नजरों में हमारे पूर्वजों ने मंत्रों एवं ऋचाओं की रचना की हैं। चार धाम से पावन उत्तराखंड की धरती को देवभूमि भी कहा जाता हैं। सुरकंडा देवी शिखर का एक दृश्य पुस्तक से उद्दृत हैं-– “कद्दुखाल तक टैक्सी से पहुँचने के बाद लगभग 3 किलोमीटर की चढ़ाई पैदल तय करनी होती है। दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर इस क्षेत्र की सबसे ऊँची चोटी पर स्थित है। ओक और चीड़ के पेड़ों के बीच बने कच्चे रास्तों पर चढ़ता मैं जब थक गया तो रास्ते में एक दुकान पर बैठ गया। दुकान तो क्या थी, जमीन पर ही बोरी बिछाकर एक पहाड़ी लड़का बुरांस का ताजा स्वादिष्ट जूस बेच रहा था जिसे पीकर तनमन में तरोताजगी आ गयी। मंदिर शिखर पर पहुँच कर तो मन-मष्तिष्क एक विस्मयकारी दुनिया की खूबसूरती में डूब गया। नंदा देवी की बर्फ से ढकी विशाल चोटियाँ सामने थी। बादलों के अनेक समूह इन चोटियों पर अठखेलियाँ कर रहे थे। यद्यपि हिमाचल और कश्मीर में मैंने बर्फ के बहुत से पहाड़ देखे है किन्तु सुरकंडा देवी चोटी से हिमालय का अदभुद दृश्य सबसे विस्मृत करने वाला है। ऊँची विस्तृत पर्वत श्रंखला पर बर्फ की चादर फैलाकर नीले गगन के वितान पर प्रकृति ने जैसे अपनी सबसे खुबसूरत पेंटिंग की रचना कर डाली हो। अगर कही ईश्वर का अस्तित्व होगा तो अवश्य ही वह प्रकृति के इन खूबसूरत नजारों में ही होगा ।  मंदिर परिसर के चारों कोनों से भाग-भाग कर मैं मंत्रमुग्ध इन नजारों को अपने दिलो दिमाग, आँखों एवं कैमरे में कैद करता रहा । आज भी वहाँ का नजारा याद कर दिल बेचैन हो उठता है, ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे मेरा जन्म इन्हीं नजारों को निहारने के लिए ही हुआ हो और इच्छा होती है कि भाग कर फिर से वही पहुँच जाऊँ।”

इसी प्रकार पुस्तक में गंगोत्री का वर्णन इस प्रकार किया हैं--  “गंगोत्री का नजारा अविस्मरणीय था। गंगोत्री ग्लेशियर से उतरती पावनी माँ गंगा, जिनके दर्शन मात्र से समस्त पाप धुल जाते है। मै उनके उद्गम स्थल पर खड़ा अत्यंत रोमांचित था। माँ गंगा की उफनती लहरें, उछलती जलधारा की मचलती बूंदे, दूसरी तरफ ऊँचे-ऊँचे चीड़ से लदी पर्वत श्रंखला, दूर शांत स्निग्ध सूर्य की किरणों से चमकती बर्फ से ढकी मेखला, सेब के पेड़, दिव्य मंदिर और फैले हुये घाट इस पवित्रतम स्थल की रमणीयता में चार चाँद लगा रहे थे। लगभग ढाई हजार किलोमीटर की यात्रा करती माँ गंगा लाखों किलोमीटर के क्षेत्र को उर्वरा शक्ति प्रदान करती है । करोड़ों लोगों की जीवनधारा माँ गंगे को नमन कर मै घंटो, घाट के किनारे पड़ी एक बेंच पर एकांत में बैठकर प्राकृतिक दृश्य के रूप में परमपिता से एकाकार होता रहा।”

पुस्तक में पगडंडियों पर भ्रमण के क्रम में पग-पग पर बिखरी खूबसूरती का यथार्थ वर्णन पाठकों को उन्हीं पगदंडियो पर लेजाकर देवभूमि के दर्शन कराता हैं। इन पगडंडियों की एक बानगी प्रस्तुत हैं—“आगे लगभग दो किलोमीटर तक पुराना पक्का रोड़ है जो बरसात एवं ऊपर से मलबा आने से जगह-जगह से टूट गया है । एक किलोमीटर आगे बढ़ने पर आप एक घने जंगल में अपने को पायेंगे। चारों तरफ ऊँचे-ऊँचे ओक के वृक्ष, उस पर लिपटी सघन लतायें, झींगुरो की झन-झन की आवाजें, बीच-बीच में किसी पक्षी की कुहक और घनी पत्तियों से छनकर आती एवं अनेकानेक बिम्ब बनाती हुई सूर्य की किरणें इस पूरे वातावरण को अदभुत एवं रहस्यमयी बना देती हैं। ऐसे में संसार का सबसे रुखा व्यक्ति भी प्रकृति के इस रोमांस में रोमांचित हुए बिना नहीं रह सकता। प्रकृति सुन्दरता की हरित अभिव्यक्ति में कोई भी एक अप्रतिम शक्ति का स्मरण अनायास ही हो जाता है और नास्तिक व्यक्ति के भी मन में उस परम शक्ति के प्रति धन्यवाद एवं आस्था की छिपी प्रवृत्ति जागृत हो जाती है।“

हिमालय से निकली सुरसरी माँ भारती के लालों का पोषण करती हैं। पूरा क्षेत्र नदियों, नालों, और झरनों से भरा हुआ हैं। मसूरी के पास स्थित झरिपानी झरने का एक दृश्य देखें-- “झरने के शोर की शांति पूरे वातावरण में छाई हुई थी । मैं पास एक बड़े पत्थर पर बैठा बूंदों का गिरना देखता रहा । तेज प्रवाह से आती जल धार पर्वत के मुहाने तक आकर अनेकानेक बूंदों में बिखर जाती है। कुछ बूंदे समूह से अलग हो जातीं और निपट अकेले मस्ती में ऐसे नीचे आती जैसे इन्हें दुनिया के रस्मों-रवायतों से कुछ लेना देना नहीं हैं। अधिसंख्यक बूंदें समूह में एक तारतम्य में नीचे आती हुई एक मधुर संगीत की रचना कर रही थी। कुछ नन्हीं-नन्हीं बूंदे हवा में तैरती जाती और झरने के चारों तरफ ओक के पत्तों से छंकर आती श्वेत रश्मियों के साथ मिलकर इंद्रधनुष का निर्माण कर रही थी। कुछ वही चट्टान पर चिपक जातीं और मज़े से फिसलती हुई नीचे आती । झरने की खूबसूरती में बूंदों का अस्तित्व कहाँ देख पाती है यह दुनिया। मैं नन्ही बूंदों में खोया रहा और इनकी मनस्थिति से जुड़ने की कोशिश करता रहा।”

देवभूमि का एक समृद्ध इतिहास रहा हैं। उत्तराखंड मुख्यतः दो भागों में विभाजित हैं। पुस्तक में यहाँ के इतिहास का विस्तृत ब्योरा दिया गया हैं जिससे पाठक इस क्षेत्र का सम्पूर्ण परिचय प्राप्त कर सकेंगें। कुमायूं का एक वर्णन पुस्तक में इस प्रकार हैं-– “सातवी सदी से ग्यारहवी सदी तक यहाँ कत्पुरी शासकों का शासन रहा। वासुदेव कत्पूरी ने इस वंश की स्थापना की एवं कार्तिकेयपूरा (अब बैजनाथ) इस वंश की राजधानी थी। अपने वैभव के चरम पर इस वंश का शासन नेपाल से लेकर अफगानिस्तान तक था। नेपाल के कंचनपुर जिले में ब्रह्मदेव मंडी की स्थापना ब्रह्मदेव नामक कत्पूरी शासक ने ही की थी। १२वी सदी में इस वंश का विघटन हो गया और चाँद शासकों ने इस क्षेत्र पर शासन किया। १५८१ में रूपचन्द्र नामक राजा ने पुनः सम्पूर्ण कुमायूँ क्षेत्र पर शासन स्थापित किया। १३वी – १४वी सदी में इस क्षेत्र पर आठ अलग अलग राजवंशो ने शासन किया । चाँद राजाओं ने चम्पावत को अपनी राजधानी बनाया और बाजबहादुर (१६३८-७८) इस वंश का सबसे प्रभावी राजा बना। बाजबहादुर ने अपने राज्य का विस्तार करते हुये गढ़वाल क्षेत्र पर भी आक्रमण कर दिया तथा तराई के इलाके सहित देहरादून तक को विस्तृत क्षेत्र को अपने राज्य में मिला लिया। भीमताल के पास अपने जनरल गोलू के नाम पर इन्होने गोलू देवता का मन्दिर बनवाया जिसकी इस क्षेत्र के लोगों में बहुत ही मान्यता हैं।”

पगडंडियाँ मन के कोमल तंतुओं को छूती हैं, गुदगुदाती हैं और एक रहस्यमयी आनंद का आस्वाद कराती हैं जिससे शब्द स्वतः ही जुड़ने लगते है और स्वर्गिक साहित्य का निर्माण करते हैं।  पुस्तक में लेखक ने उत्तराखंड की साहित्यिक विरासत का भी विस्तृत वर्णन किया हैं  एक बानगी प्रस्तुत है-- “प्रातः काल का कौसानी अपने वैभव के चरम पर होता है। अलसाई वृक्ष लताओं को जगाने वाली मंद-मंद बहती हवा दिनकर की सर्वदा सुखाय रश्मिययों के स्पर्श और नजदीक एवं स्पष्ट दिखते हिमशिखर का दर्शन करते व्यक्ति अपनी सुध-बुध ही खो देता है। मैं भी इस सुरम्य प्राकृति सुषमा का रसास्वादन अनन्त काल तक करता रहता अगर मुझे तैयार होने के लिए आवाज़ न दी गयी होती। यहाँ से नाग पर्वत की चोटियाँ स्पष्ट दिखाई देती है। इसके बाद हम तैयार होकर पंत म्युजियम देखने निकले। प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत के जन्म स्थली का दर्शन मेरे लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नही था । यहाँ पंत जी के अनेकों हस्तलिखित पत्र, तश्वीरें और पांडुलिपियाँ सुरक्षित है। हरिवंशराय बच्चन के साथ उनकी कई तस्वीरें आकर्षण का केन्द्र हैं। कौसानी, अल्मोड़ा और प्रकृति की सुकुमारता का जो चित्रण सुमित्रानंदन पंत ने किया है वह अन्यत्र दुर्लभ है। मेरा मन पंत जी की एक रचना अनायास ही गुनगुनाने लगा-- 

छोड़ द्रुमों की मृदु छाया
तोड़ प्रकृति से भी माया
बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
भूल अभी से इस जग को !
तज कर तरल तरंगों को
इन्द्रधनुष के रंगों को
तेरे भ्रू भ्रंगों से कैसे बिधवा दूँ निज मृग सा मन?
भूल अभी से इस जग को! “

इस प्रकार जय प्रकाश पाण्डेय द्वारा रचित यात्रा वृतांत “पगडंडी में पहाड़” पुस्तक मानव की सहज कोमल भावनाओं को जागृत करती है। हिमालय के सुरमई स्थलों से लेकर देवभूमि के इतिहास, धर्म, सभ्यता, संस्कृति, प्रकृति की खूबसूरती के साथ-साथ पर्वतीय अंचल के गांवों और यहाँ के भोले-भाले लोगों से परिचय कराती हैं। पुस्तक पढ़ने के क्रम में यदि आप अपना बैग तैयार कर इन पगडंडियों में भ्रमण करने को निकल पड़े तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी।

-भारत-दर्शन (समीक्षा)

* जे.पी. पाण्डेय शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग में निदेशक के पद पर कार्यरत हैं। आप भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा के अधिकारी रहे हैं। कविता, कहानी, यात्रा-वृत्तांत, शिक्षा एवं समसामयिक विषयों पर संपादकीय लेखन में संलग्न हैं। इनका कविता संग्रह 'दरिया के दो पाट' प्रकाशित है। उन्हें अखिल भारतीय रेल हिंदी पुरस्कार, डॉ. भीमराव आंबेडकर साहित्यिक सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार मिला है।

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