भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।

लोगों का मशवरा है कि… (काव्य)

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Author: ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र 

लोगों का मशवरा है कि मैं घर खरीद लूं,
उन्हें मालूम नहीं पहले मुक़द्दर खरीद लूं।

दो चार मैं भी खुशियों के मंज़र खरीद लूं,
मुझे प्यास इतनी है कि समंदर  खरीद लूं।

कांच के महलों के तंज़, सहे  जाते  नहीं,
मैं सोचता हूं  थोड़े  से  पत्थर  ख़रीद  लूं।

मैं क़ानून जानता हूं, अलग बात है मगर, 
ये हालात कह रहे हैं कि खंज़र खरीद लूं।

दस्तार के अलावा भी, कई और काम हैं,
ज़्यादा ख़ास ये है कि एक सर  ख़रीद लूं।

तुम शर्त लगा लेना, उड़ने के  ख़्याल पर,
जो टूटे हैं हसरतों के कुछ  पर  खरीद लूं।

मेरे शहर में मिलावट का दस्तूर है ज़फ़र,
सोचता हूं फिर भी कुछ बेहतर खरीद लूं।

-ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
 F-413, Karkardooma court 
 Delhi -32, INDIA
 zzafar08@gmail.com

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