भाषा और राष्ट्र में बड़ा घनिष्ट संबंध है। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

महान सोच (बाल-साहित्य )

Print this

Author: सुरेन्द्र सिंह नेगी | बालकथा

एक बार चीन के महान् दार्शनिक कन्फ्यूशियस से मिलने एक राजा आया। उसने उनके सामने कई सवाल रखे। इसी क्रम में उसने पूछा, "क्या ऐसा कोई व्यक्ति है, जो महान हो, लेकिन उसे कोई जानता न हो। "

इस पर कन्फ्यूशियस ने मुसकराकर कहा, "हम ज्यादातर महान लोगों को नहीं जानते। दुनिया में कई ऐसे साधारण लोग हैं, जो वास्तव में महान व्यक्तियों से भी महान् हैं।" राजा ने आश्चर्य से कहा, "ऐसा कैसे हो सकता है?"

इस पर कन्फ्यूशियस बोले, "मैं तुम्हें आज ही ऐसे व्यक्ति से मिलवाऊँगा।"

इसके बाद वह राजा को अपने साथ लेकर एक गाँव की ओर निकल गए। काफी दूर चलने के बाद उन्हें एक वृद्ध नजर आया। वह पेड़ के नीचे कुछ घड़े लेकर बैठा हुआ था। राजा और कन्फ्यूशियस ने समझा कि शायद वह वृद्ध गरमी के इस मौसम में चने बेचकर अपना गुजारा करता होगा। उन दोनों ने ही वृद्ध से माँगकर पानी पिया। फिर चने भी खाए। घड़े का शीतल जल पीने और चने खाने से दोनों को गरमी से राहत मिली। जब राजा वृद्ध को चनों का दाम देने लगा तो वह बोला, “महाशय ! मैं कोई दुकानदार नहीं हूँ। मैं तो सिर्फ वह करने का प्रयास कर रहा हूँ, जो इस उम्र में कर सकता हूँ। मेरा बेटा चने का व्यवसाय करता है। घर में मेरा मन नहीं लगता। इसलिए यहाँ चने और पानी लेकर बैठ गया हूँ। राहगीरों को ठंडा पानी पिलाकर व चने खिलाकर मेरे अंतर्मन को एक अद्भुत तृप्ति मिलती हैं। इससे मेरा समय भी कट जाता है और तसल्ली भी मिलती है कि मैं कुछ सार्थक काम कर रहा हूँ।"

तब कन्फ्यूशियस ने राजा से कहा, "देखो राजन्, यह आम आदमी कितना महान है। इसकी सोच इसे महान् बनाती हैं। सिर्फ बड़ी-बड़ी बातों से कोई महान नहीं होता। महान वही हैं, जो दूसरों के लिए अपना जीवन लगा दे।”

राजा ने अपनी सहमति जताई और उस वृद्ध के आगे सिर झुका दिया।

सुरेन्द्र सिंह नेगी
[महापुरुषों की शिक्षाप्रद बालकथाएँ, प्रभात प्रकाशन]

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश