दुनिया का सबसे अच्छा तंत्र अपना है। नाम है जनतंत्र। हमारे लिए बहुत गर्व का विषय है जनतंत्र क्योंकि जनतंत्र में सबको समान अवसर हैं इसलिए यह बहुत अच्छा माना जाता है। जनतंत्र में आगे बढ़ने के लिए कोई रोक - टोक किसी के लिए नहीं है इसलिए यह खूब अच्छा है। जनतंत्र में अपने रहनुमाओं को चुनने का हक भी प्रजा को है इसलिए प्रजा ही जिम्मेदार मानी जाती है कि कौन राजधानी जाएगा ,कौन नहीं। जनतंत्र में जो साधन संपन्न होकर लिख पढ़ जाते हैं और परीक्षाएं वगैरह उत्तीर्ण कर उच्च अधिकारी बन जाते हैं और एयरकंडीशंड दफ्तरों में बैठते हैं वो अपनी जगह हैं मगर अगर कभी कोई पीछे रह जाए, किसी कारण से बेचारा निरक्षर रह जाए , तो वो परीक्षा देकर क्या करेंगे , उन्हें आगे बढ़ने के अवसर कैसे मिलेंगे। वो भी लाल बत्ती में घूमना चाहते हैं। उन्होंने पैदा होकर कौन सी गलती कर डाली भला जो वो सूट बूट टाई का आनंद न ले सकें, उनका भी दबदबा क्यों न हो। इसके लिए हमारा अच्छा जनतंत्र है। जनतंत्र जात-पात, धर्म, लिंग, संपत्ति, छोटा-बड़ा, अनपढ़, पढा-लिखा, ईमानदार, बेईमान, लुच्चा-टुच्चा या सच्चा नहीं देखता बल्कि सबको एक धरातल पर रखता है, किसी से कोई भेदभाव नहीं करता, जो चाहे सो आए और जनतंत्र में पाए के सिद्धांत में विश्वास रखता है इसलिए हमारा जनतंत्र अच्छा है।
जनतंत्र में यदि आप प्रजा द्वारा चुन लिए जाते हैं तो फिर आप भी ऐसे अधिकारियों के समकक्ष तो क्या इन्हें आदेशित भी कर सकते हैं, अपने इशारों पर नचा भी सकते है, जनहित में। इसलिए जनतंत्र अच्छा है। आदेश का पालन करने के लिए अधिकारी हैं तो उन्हें आदेश देने के लिए जनतंत्र में प्रजा के वोट से चुन कर आने वाले जनप्रतिनिधि हैं न। एक लोकसेवक हैं, दूसरे जनप्रतिनिधि। लोकसेवक मतलब जनता के नौकर और उधर जनतंत्र के जनता के जनप्रतिनिधि। तो दोनों में बड़ा तो जनप्रतिनिधि ही हुआ न क्योंकि जनतंत्र में प्रजा ही सर्वोच्च है और प्रजा के प्रतिनिधि, प्रजा द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि हैं तो जाहिर है कि लोकसेवक अधिकारी, जनप्रतिनिधियों के सामने बौने ही हैं। लोकसेवक वीआईपी हैं तो जनप्रतिनिधि वीवीआइपी। इसीलिये जिन्हें लोकसेवक कभी, पहले जिलाबदर कर देते थे, जनतंत्र में समय आने पर अब वही लोकसेवकों के तबादले कर सकते हैं , गलती पर निलंबित भी कर सकते हैं और सवाल–जवाब भी कर सकते हैं। जनतंत्र सबको हिसाब करने का अवसर सुलभ कराता है।
जनतंत्र की नजर में सब इम्पोर्टेन्ट हैं, इसलिए जनतंत्र अच्छा है। जो तब न बन पाए, अब अभी, कभी भी और आगे भी बन सकते हैं जो वो बनना चाहें। जनतंत्र ने सबके लिए द्वार खोल रखे हैं इसलिए जनतंत्र अच्छा है। कोई दल आपको दरकिनार कर दे, प्रजा के समक्ष आपको परीक्षा न देने दे तो अपना अच्छा जनतंत्र है, आप अपना नया दल बना लें, किसी और दल में भर्ती हो जाएं, जनतंत्र आपको रोकता नहीं है बल्कि पूरी स्वतंत्रता देता है कि जो चाहे सो करें, यह समानता के अधिकार की बात है। इसलिए जनतंत्र अच्छा है। एक बार आप जनतंत्र के स्तंभ को आधार बनाकर शीर्ष पर पहुंच जाएं तो अपनी विचारधारा के संगी राजनेताओं को भी सीधे उपकृत कर सकते हैं कोई भी अन्य संवैधानिक पद देकर। जनतंत्र इसलिए भी अच्छा है कि यदि कभी प्रजा आपको राजधानी न भी भेजे तो भी जनतंत्र आपको निराश नहीं करता। अभी भी आप अपने हाईकमान की मर्जी पर सरकार में कोई भी ओहदा पा सकते हैं बस छः माह के अंदर आपको फिर से प्रजा के बीच जाकर राजधानी का टिकट पाना होगा। देखा कितना अच्छा है जनतंत्र कि आपको दूसरा अवसर भी देता है निराश नहीं करता। लोकसेवक और जनप्रतिनिधियों का तालमेल कभी गड़बड़ा जाए या ये निरकुंश हो जाएं तो भी चिंता की बात नहीं क्योंकि इनके ऊपर, जनतंत्र में न्याय के मंदिर हैं जो देश और जनता के हितैषी होकर दूध का दूध और पानी का पानी कर देते हैं। जनतंत्र इसीलिए भी अच्छा है कि फर्श से अर्श तक का सफर यह किसी को भी करवा सकता है बस आपके भाग्य में होना चाहिए।
-डॉ. हरीशकुमार सिंह
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