देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।

प्रश्नचिह्न  (विविध)

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Author: लतीफ घोंघी

प्रश्नवाचक चिह्न पर उनकी बड़ी आस्था है। उनकी ऐसी मान्यता है कि अपने देश की सार्थक भाषा है तो प्रश्नवाचक चिह्न की भाषा। उनकी आदत है कि हर स्थिति के पीछे वे एक प्रश्नवाचक चिह्न जरूर लगा देते हैं। इससे दो फायदे हैं। पहला यह कि लोगों को पता चलता है कि इस आदमी का अध्ययन और चिंतन-मनन तगड़ा है और दूसरा यह कि एक प्रश्नवाचक के लग जाने से उस स्थिति के अनेक नये कोण पैदा हो जाते हैं। जैसे आपने लिखा--प्रधान मंत्री। वे उसके पीछे प्रश्नवाचक चिह्न लगा देंगे। आपने लिखा--त्रिपाठी। वे उसके पीछे प्रश्नवाचक चिह्न लगा देंगे।

आपने लिखा--शुक्ल। वे उनके पीछे भी प्रश्नवाचक चिह्न लगा ही देंगे। अब यह सोचना आपका काम है कि इस त्रिकोण के पीछे छिपा रहस्य क्या है? क्यों है और कैसे है? प्रश्नवाचक चिपकाकर वे तो बरी हो गये। अब आप अपना माथा पीटते रहिये।

हम भी पीट रहे हैं उसी दिन से, जिस दिन उनका पत्र हमें मिला। पोस्टकार्ड पर पहले उन्होंने एक बड़ा प्रश्नवाचक चिह्न बनाया। इसके बाद उसके दाहिने तरफ दो छोटे प्रश्नवाचक चिह्न लगाये। एक हिन्दुस्तान टाइप नक्शा बनाया और उसके अन्दर छोटे-छोटे दस-बारह प्रश्नवाचक बनाए। एक प्रश्नचिह्न ऐसा बनाया जो कृपाण से भी मिलता-जुलता था भौर त्रिशूल से भी। पोस्टकार्ड को उल्टा करके देखने से लगता था कि कौमी एकता का कोई संदेश है ।

पत्र पढ़कर मैं उदास हो गया। इतना गंभीर किस्म का पत्र मैं अपने जीवन में पहली बार पढ़ रहा था। मित्रों को दिखाया तो बोले--जरूर किसी महान आदमी का पत्र है, जिसने इस जिंदगी की फिलासफी को अन्दर तक समझा है। मैंने पूछा--मुझे समझाओ कि आखिर ये कहना क्या चाहते हैं? मित्र बोले--यार अजीब मूर्ख आदमी हो.... इतनी-सी बात नहीं समझे? वे बता रहे हैं कि प्रश्नवाचक ही सब कुछ है..... इसे समझ गये तो सफल हो गये?

मैंने कहा--फिर? वे बोले--फिर क्या..... डूब मरो चुल्लू भर पानी में.....किस यूनिवर्सिटी से किया है यार एम० ए०?

मैंते तय किया कि उनसे मिलकर इस प्रश्नवाचक चिह्न की फिलासफी जरूर समझूंगा। यही सोचकर मैं उनसे मिलने चला गया।

वे एक साधारण और औसत किस्म के भारतीय आदमी थे। बदन उनका बिल्कुल प्रश्ववाचक चिह्न की तरह लचकदार था। कान प्रश्नवाचक थे। और आँखें तो थीं ही। कुरते की सामने की जेब में आठ-दस प्रश्नवाचक चिह्न भरे थे। पाजामे की दोनों जेबों में प्रश्नवाचक के दो सौ-सौ के बंडल रखे हुए थे। उन्होंने सामने की जेब से एक प्रश्नवाचक चिह्न निकाला और बोले--क्या चलेगा? खारा? मीठा? या और कुछ?

उनके कमरे की दीवार पर बड़े-बड़े दो प्रश्नवाचक चिह्न बने थे। कमरे में चार कुर्सियां रखी थीं और चारों की पीठ प्रश्नवाचक थी। दरवाजे पर लगे परदे पर एक भुस्का टाइप का मोटा-सा प्रश्नवाचक चिह्न बना था। खिड़कियों पर परदे नहीं लगे थे। खिड़की की ग्रिल प्रश्नवाचक डिजाइन में थी। मुझे लगा कि मैं इस कमरे से विक्षिप्त होकर ही बाहर निकलूंगा। यह भी लगभग तय था कि यहाँ से निकलने के बाद मैं आदमी कम और प्रश्नवाचक अधिक लगूँगा।

वे अन्दर गये और थोड़ी देर बाद कांच की प्लेट में चार-पांच प्रश्नवाचक चिह्न सजा कर ले आये। बोले--लीजिये।

मैंने पूछा--क्या है? मुझे डाइविटीज़ है। मीठा होगा तो नहीं चलेगा।

उन्होंने एक प्रश्ववाचक चिह्न को बीच से तोड़ा और चखकर बोले--- सॉरी.....मीठा ही है। नमकीन शर्बत बना देता हूँ आपके लिये ।

इसके पहले कि मैं इन्कार करता वे आलमारी से एक डिब्बा ले आये ।

एक प्रश्नवाचक चिह्न वाली चाबी से उन्होंने डिब्बे का ढक्कन खोला।

डिब्बे से आठ-दस प्रश्नवाचक चिह्न निकाले और पास रखे खलबत्ते में कूटने लगे।

मैंने पूछा--यह क्या है? वे बोले--सेंधा नमक है। हाजमे के लिये ठीक होता है।

उन्होंने कूट-पीसकर प्रश्नवाचक गिलास में डाले और एक चम्मच से घोलकर मुझे देते हुए बोले---लीजिये।

बड़ी दुविधा में जान फंसी थी। खुदा का नाम लेकर और नाक बंद करके शर्बत को तो अन्दर ढकेल दिया, लेकिन जैसे ही वह प्रश्नवाचक घोल पेट में पहुंचा मुझें लगा जैसे मेरे पेट में कुछ खदबदा रहा है। पेट ऐठने लगा। मैंने कहा--मेरा पेट गड़बड़ा रहा है।

वे बोले यही प्रश्नवाचक स्थितियों का सार्थक प्रभाव है। देश में आज एक भी स्थिति ऐसी नहीं है, कि जिसे आप हजम कर सकें। पंजाब को लें, यू० पी० को लें, बिहार को लें या गुजरात को लें। चाहे जिसे लें, आपके पेट में गड़गड़ाहट जरूर होगी....अपना देश प्रश्नवाचक पहले और हिन्दुस्तान बाद में है।

मैंने कहा---जल्दी से एक लोटा पानी मंगवाइए।

वे समझ गये कि मैं बहुत ही चुगद किस्म का आदमी हूँ जो देश की इतनी गंभीर स्थितियों की चर्चा के समय एक लोटे पानी के आधार पर ही अपने व्यक्तित्व का मूल्यांकन कर रहा हूँ।

वे बोले---अभी लाता हूँ।

वे अन्दर गये और एक अल्यूमीनियम के प्रश्ववाचक लोटे में पानी ले आये। मैंने पूछा--कहाँ का पानी है?

वे बोले--सरकारी योजनाओं का जल है। मेरी हाबी है कि मैं जो बांध देखने जाता हूँ वहाँ से थोड़ा सा पानी अपने लिए ले आता हूँ जिसका उपयोग इन्हीं स्थितियों में करता हूँ। आप गरम पानी चाहते हों तो विवादों में फंसे जल का इंतजाम भी है।

मैंने कहा--नहीं, ठंडा ही चलेगा।

वापस लौटने पर उन्होंने पूछा---अब कैसा लग रहा है?

मैंने कहा--मुझे लग रहा है जैसे मेरे अन्दर कोई बहुत बड़ा प्रश्न छटपटा रहा है.....मुझे बेचैनी लग रही है।

उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई। बोले--बिल्कुल ठीक है। अब समझ में आया आपको कि प्रश्नवाचक क्या है? बुद्धिमान आदमी की तरह सोचोगे तो इसी प्रश्नवाचक चिह्न के आगे-पीछे आपको पूरा देश नज़र आयेगा। एकता नज़र आयेगी। अखंडता नज़र आयेगी। आतंकवाद नज़र आयेगा। समाज की विसंगतियां नजर आयेंगी और एक मूर्ख आदमी की तरह सोचोगे तो केवल गड़गड़ाता हुआ पेट और एक लोटा पानी ही नजर आयेगा....समझे ?

और इसके पहले कि मैं कुछ कहता, उन्होंने पाजामे की जेब से एक प्रश्नवाचक चिह्नों का वजनदार बंडल मेरे मुँह पर मारकर कहा--अब आप जा सकते हैं।

-लतीफ घोंघी

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