विदेशी भाषा के शब्द, उसके भाव तथा दृष्टांत हमारे हृदय पर वह प्रभाव नहीं डाल सकते जो मातृभाषा के चिरपरिचित तथा हृदयग्राही वाक्य। - मन्नन द्विवेदी।

मैं करती हूँ चुमौना  (काव्य)

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रचनाकार: अलका सिन्हा

कोहरे की ओढ़नी से झांकती है
संकुचित-सी वर्ष की पहली सुबह यह
स्वप्न और संकल्प भर कर अंजुरी में
इस उनींदी भोर का स्वागत,
मैं करती हूँ चुमौना।
 
इस बरस के ख्वाब हों पूरे सभी
बदनजर इनको न लग जाए कभी
दोपहर की धूप में काजल मिलाकर
मैं लगाती हूँ सुनहरे साल के
गाल पर काला डिठौना।
 
फिर वही बच्चों की मोहक टोलियां हों
बाग में रूठें, मनाएं, जोड़ियां हों
पंछियों के साथ मिलकर चहचहाए
राह देखे शाम लेकर
घास का कोमल बिछौना।
 
गत बरस तो बीत घूंघट में गया
इस बरस का चांद दूल्हे-सा सजा
ले कुंआरे स्वप्न गर्वीला खड़ा है
प्रेम से मनमत्त है आतुर, करा लाने को गौना।

इस उनींदी भोर का स्वागत
मैं करती हूँ चुमौना!

-अलका सिन्हा

अलका सिन्हा की इस रचना 'मैं करती हूँ चुमौना' की वीडियो प्रस्तुति देखिए।  

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