हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
 

काका की वसीयत (विविध)

Author: रोहित कुमार हैप्पी

सहज विश्वास नहीं होता कि कोई व्यक्ति अपनी वसीयत में यह लिखकर जाए कि उसके देहांत पर सब जमकर हँसें, कोई रोए नहीं!

जी हाँ!! ऐसी भी एक वसीयत हुई थी। यह वसीयत थी हम सब के चहेते हास्य कवि काका हाथरसी की।

काका जीवन भर तो सभी को हँसाते ही रहे, अपने जाने पर भी लोगों को मुसकुराते रहने का आदेश दे गए। वह इस दुनिया में आए ही लोगों को हँसाने के लिए थे। उनकी वसीयत का सम्मान करते हुए ऐसे ही किया गया।

18 सितंबर 1995 को एक ओर काका का शरीर पंचतत्व में विलीन हो रहा था और दूसरी ओर शमशान में हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया हया था। आधी रात को सब लोग ठहाके मार-मार कर हँस रहे थे। 

काका की शवयात्रा भी उनकी इच्छा के अनुसार ऊंट गाड़ी पर ले जाई गई थी।


- रोहित कुमार हैप्पी

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश