जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
हाथ उठा नाची तरकारी (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:सरस्वती कुमार दीपक

ताक लगाकर बैठी थीं,
मालिन की डलिया में तरकारी ।
अवसर पाया, ताक-धिना-धिन--
नाच उठीं सब बारी-बारीसरस्वती कुमार दीपक

नींबू और टमाटर लुढ़के, उछल पड़े तरबूजे,
काशीफल के साथ बजाते, ढोल मगन खरबूजे,
ककड़ी अकड़ी और थाप
तबले पर उसने मारीसरस्वती कुमार दीपक

कद्दू काट मृदंग बनाकर, नाची भिंड़ी रानी,
नीबू काट मंजीरों पर, कहती अनमोल कहानी,
बीच बजरिया, नाच निराला--
जमकर देख रहे नर-नारी!

लौकी गोभी नाक सिकोड़े, सेम मेम-सी नाचे,
आलू और कचालू ने थे बोल मटर के बांचे,
पालक बालक जैसा डोले
मैथी की छवि न्यारी ।

- सरस्वती कुमार दीपक
[हिंदी के सर्वश्रेष्ठ बालगीत, १९८७, पराग प्रकाशन, दिल्ली]

 

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