शहर में आंदोलन चल रहा था।
'अच्छा मौका है। यह पड़ोसी बहुत तंग करता है। आज रात इसे सबक सिखाते हैं।' एक ने सोचा।
'ये स्साला, मोटर साइकल की बहुत फौर मारता है। आज तो इसकी बाइक गई!' एक छात्र मन में कुछ निश्चय कर रहा था।
'सामने वाले की दुकान बहुत चलती है...आज जला दो। अपना कम्पीटिशन ख़त्म!' दुकानदार ने नफ़े की तरकीब निकाल ली।
'देखो, कुछ दुकानें, कुछ मकान, कुछ बसें फूंक डालो। सिर्फ विरोधियों की ही नहीं अपनी पार्टी की भी जलाना ताकि सब एकदम वास्तविक लगे।' नेताजी पार्टी कार्यकर्ताओं को समझा रहे थे।
फिर चोर-उच्चके, लुटेरे कहाँ पीछे रहते! आंदोलन के नाम पर हर कोई अपनी रोटियां सेंकने में लग गया था।
आंदोलन दंगे में बदल चुका था।
- रोहित कुमार 'हैप्पी' |