मनुष्य सदा अपनी भातृभाषा में ही विचार करता है। - मुकुन्दस्वरूप वर्मा।
माँ (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:शैलेन्द्र कुमार दुबे


"माँ, हम दोनों ने फैसला कर लिया है कि हमारा बच्चा किसी और की कोख से पैदा होगा ।"

"क्या कह रही हो, पागल तो नहीं हो गई? तुम्हारा बच्चा किसी और की कोख से ?"

"माँ, हम किराये की कोख का इंतज़ाम कर रहे हैं।"

"...पर लोग क्या कहेंगे?"

"लोगों को कह दूँगी, कि 'आय एम अनकेपेबल।' और माँ, अगर सब कुछ ठीक रहा तो मैं इस बर्ष डायरेक्टर बन जाऊँगी, फिर सोचो कितना पैसा कमाऊँगी। और उसको सब कुछ दूँगी।"

"अभी बच्चे को पेट में रहने का समय तो दे नहीं पा रही, बाद का किसने क्या देखा है ?" माँ ने झल्लाते हुए कहा।

- शैलेन्द्र कुमार दुबे, केन्या
  ई-मेल: skdubeyboi@gmail.com

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