रविवार की अलसाई सी दोपहर, पायल ने कॉफ़ी कप टेबल पर रखते हुए कहा, "मैंने तो साफ़-साफ़ कह दिया एम्.डी से, ९ महीने की छुट्टी तो चाहिए ही चाहिए।"
"और...वो मान गया ?" सरिता ने आश्चर्य भरा प्रश्न किया । प्रश्न वाजिब भी था।
कार्पोरेट कंपनियों से छुट्टी ले लेना भी अपने आप में एक उपलब्धि ही है और खास कर के जिस पद पर पायल और सरिता काम करती है। साल ख़त्म हो जाता है पर छुट्टियाँ नहीं मिलतीं ।
"अरे देता कैसे नहीं, प्रेगनेंसी लीव मांगी थी, देना तो थी ही उसे।" पायल ने ऐंठते हुए कहा । "थोड़ी ना-नुकुर तो कर रहा था, पर मैंने बतला दिया कि महिला मोर्चा को लिखित में देने की तैय्यारी है, मातृत्व अवकाश कोई मज़ाक नहीं है"। पायल की आँखों में चमक थी।
"सही बात है, अब हम भला किस से दबने वाले हैं, वो ज़माने गए जब महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता था, ये दौर तो हमारा है।" सरिता ने भी समर्थन किया।
"नारी सशक्तिकरण का ज़माना है, और मातृत्व अवकाश, ये तो अधिकार है हर महिला का । मैंने तो ऊपर तक जाने की तैय्यारी कर रखी थी, एम्.डी की तो खाट खड़ी हो जाती ।" कहते हुए पायल ने कॉफ़ी का एक घूंट लिया।
तभी तेज़ क़दमों से चलती हुई लक्ष्मी घर में दाखिल हुई, पायल ने तुरंत कहा "आज बड़ी देर कर दी आने में, चलो पहले झाड़ू कर दो, मैं कपड़े भी निकाल देती हूँ"।
"मेडम जी, मुझे छुट्टी चाहिए", लक्ष्मी ने दबे से सुर में कहा।
पायल ने तल्खी से पूछा, "क्यों क्या काम है?"।
"मेडम जी आप तो जानती ही हैं, पेट से हूँ, चौथा महीना है, ऐसी हालत में काम नहीं हो पाता ।" लक्ष्मी ने आशा भरी नज़रों से पायल की तरफ देखा।
"छुट्टी-वुट्टी कोई नहीं मिलेगी, अब क्या तुझे 6 महीनों की छुट्टी दूँ, और ये काम, काम कैसे होगा?" पायल ने लक्ष्मी की उम्मीदों को चूर करते हुए कहा।
लक्ष्मी हिम्मत जुटा कर बोली "पर मेडम जी.... ।"
"पर-वर कुछ नहीं । कल से या तो अपनी लड़की को भेजो या सीधे-सीधे आओ काम पर ।" पायल ने अंतिम निर्णय दे दिया।
लक्ष्मी आँखों में आंसू लिए काम पर लग गयी। पायल और सरिता फिर अपनी बातों में खो गए। नारी सशक्तिकरण और महिलाओं के दौर वाली बातें शायद बेमानी ही थीं। शायद सशक्तों को और सशक्त करना ही सशक्तिकरण है।
-सम्यक मिश्र बी.एस.सी ( प्रथम वर्ष )
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