देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।
राजेंद्र यादव रचनावली का लोकार्पण (विविध)  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन समाचार

नई दिल्ली 13 अगस्त 2016: राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा 13 अगस्त 2016 को 'राजेंद्र यादव रचनावली' का लोकापर्ण एवम् पुस्तक परिचर्चा आयोजित की गई। यह आयोजन वीमेन प्रेस कोर्प्स, विंडसर प्लेस, अशोक रोड में किया गया था । अर्चना वर्मा और बलवंत कौर के संपादन में राजेंद्र यादव रचनावली 15 खंडो में राधाकृष्णा प्रकाशन से प्रकाशित की गयी है । इस अवसर पर वरिष्ठ आलोचक निर्मला जैन, कथाकार विश्वनाथ त्रिपाठी, कथाकार आलोचक अर्चना वर्मा, संयोजक के रूप बलवंत कौर एवं राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी भी परिचर्चा में उपस्थित रहे।

Rajendra Yadav Rachnavali
रचना यादव, अर्चना वर्मा, निर्मला जैन, विश्वनाथ त्रिपाठी, बलवंत कौर व अशोक माहेश्वरी

राजेंद्र यादव समाज के वंचित तबके और स्त्री-पुरुष संबंधों के विषय पर लेखन के लिए विशेष तौर पर जाने जाते हैं।

बलवंत कौर ने इस रचनावाली व आयोजन के बारे में बताया, "आज के लोकापर्ण में राजेन्द्र यादव जो की एक लेखक और संपादक रहे हैं, उन्हें हम एक रचनाकार के रूप में याद कर रहे है। इस रचनवाली की विशेषता यह है कि पहली बार उनके अप्रकाशित उपन्यास और कविताये 11 व 12 खंड में सामने आएंगी।"

रचना यादव ने अपने पिता की रचनावली पर प्रसन्नता दर्शायी, "मुझे बहुत गर्व का अहसास हो रहा है। मुझे तो यह देख कर अचरज हो रहा है कि उन्होंने इतना लिखा है कि उसे 15 खंडो में भी रखना मुश्किल हो रहा है।"

विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा, "जब उन्होंने हंस पत्रिका निकली तो लोगो को संदेह था कि वो प्रेमचंद्र की परम्परा का पालन कर पाएंगे कि नही, लेकिन उन्होंने दिखा दिया कि वो उनके उत्तराअधिकारी हैं । आज उनकी रचनवाली प्रकाशित हो रही है इसपर मुझे ख़ुशी के साथ ईर्ष्या भी हो रही है।"

निर्मला जैन का कहना था, "संपादकीयों के द्वारा तमाम विवादों को जीवित रखा, हिंदी में खासकर महिला और दलित यह इनका बड़ा योगदान है । राजेंद्र यादव रचनावली के खंड 1 से 5 तक में संकलित उपन्यास इसकी गवाही देते हैं!"

'राजेंद्र जी ने अपने लेखन का प्रारंभ कविताओं से किया परन्तु बाद में 1945-46 की इन आरंभिक कविताओं को महत्त्वहीन मान कर नष्ट कर दिया! बाद में लिखी उनकी कविताएँ ‘आवाज तेरी है' नाम से 1960 में ज्ञानपीठ प्रकाशन से प्रकाशित हुई। इनके अतिरिक्त राजेंद्र यादव की कुछ कविताएँ अभी तक अप्रकाशित हैं! रचनावली का पहला खंड उनके इसी आरंभिक लेखन को समर्पित है, जिसमे एक तरफ उनकी प्रकाशित-अप्रकाशित कविताएँ हैं और दूसरी तरफ ‘प्रेत बोलते हैं' और ‘एक था शैलेन्द्र' जैसे प्रारंभिक उपन्यास ! दूसरे खंड में ‘उखड़े हुए लोग' तथा ‘कुलटा', तीसरे खंड में ‘सारा आकाश', ‘शह और मात, ‘अनदेखे अनजान पुल' और चौथे खंड में ‘एक इंच मुस्कान' तथा ‘मंत्रविद्ध' जैसे उपन्यास शामिल है ! रचनावली का पांचवां खंड राजेंद्र जी के अधूरे-अप्रकाशित उपन्यासों को एक साथ प्रस्तुत करता है ! अधूरे होने के कारण इन सब को एक ही खंड में शामिल किया गया है!'

 

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