अक्सर मै अँग्रेज़ी सिनेमा देखने जाता हूँ और अर्ध-रात्रि को घर वापिस लौट कर आता हूँ ।
एक दिन रिक्शा वाले को किराया देने के लिये मेरे पास रेज़गी न थी और उसके पास भी फुटकर पैसे न निकले । नज़दीक की सभी दूकानें बंद देख मैंने उसे एक पाँच का नोट दिया और अगले चौराहे से भुना लाने को कहा । कहीं वह नोट लेकर ही न भाग जाये इसलिये मैंने मन ही मन उसके रिक्यी का नंबर याद कर लिया था ।
और कुछ देर पश्चात् ही जब उस रिक्शावाले ने लौट कर पाँच रुपयों की पूरी रेज़गी रख दी तो यह सोच मैं मन ही मन अत्यन्त लज्जित हुआ कि आदमी पर मेरा इतना भी विश्वास नहीं!
एक दिन और मैं जब अर्ध-रात्रि को सिनेमा देख कर लौटा तो मेरे पास दो रुपये का एक नोट ही बच रहा था और मेरे रिक्शावाले के पास उसकी भी चिल्लर नहीं थी । अधिक रात बीत जाने के कारण आज भी पास की सभी दूकानें बन्द हो गई थीं । रिक्शावाले को मैंने नोट दिया और कहीं से चिल्लर ले आने के लिये कहा । जानबूझ कर इस मर्तबा मैने रिक्शा का नंबर नोट नहीं किया ।
और बहुत देर तक मैंने ने उस रिक्शावाले की राह देखी किन्तु फिर वह लौट कर नहीं आया!
- आनन्द मोहन अवस्थी साभार - बन्धनों की रक्षा
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