हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
कवि रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ नहीं रहे (विविध)  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन संकलन

8 दिसंबर 2015 (भारत):  जन-कवि रमाशंकर यादव ‘विद्रोही' के चले जाने से सबसे अधिक धक्का जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों को लगा है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले दो दशकों में आने वाले हजारों छात्र उनकी कविता सुनकर संघर्ष का पाठ सीखे हैं। 'विद्रोही' ऑक्युपाई यूजीसी के मार्च में भी सम्मिलित होने आए थे, उसी समय उनकी तबीयत बिगड़ गई और तत्काल उनका निधन हो गया।

उनकी चर्चित कविताओं के तेवर देखिए -

‘जब भी किसी गरीब आदमी का अपमान करती है,
ये तुम्हारी दुनिया,
तो मेरा जी करता है,
कि मैं इस दुनिया को उठाकर पटक दूं।'

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‘मैं भी मरूंगा और भारत के भाग्य विधाता भी मरेंगे
लेकिन मैं चाहता हूं
कि पहले जन-गण-मन अधिनायक मरें,
फिर भारत भाग्य विधाता मरें ',

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‘मैं किसान हूं आसमान में धान बो रहा हूं,
कुछ लोग कह रहे हैं कि पगले,
आसमान में धान नहीं जमा करता,
मैं कहता हूं पगले,
अगर जमीन पर भगवान जम सकता है
तो आसमान में धान भी जम सकता है।'

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