देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।
कथाकार डॉ० महीप सिंह नहीं रहे (विविध)  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन समाचार

24 नवंबर 2015 (भारत): सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ महीप सिंह का 24 नवंबर को दोपहर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। महीप सिंह गुड़गांव की पालम विहार कॉलोनी में अपने बेटे संदीप सिंह के साथ रहते थे। 85 वर्षीय महीप सिंह गत् सप्ताह से मेट्रो अस्पताल में भर्ती थे।

डॉ० महीप सिंह का जन्म 15 अगस्त 1930 को हुआ था। महीप सिंह का परिवार पाकिस्तान के झेलम से उत्तर प्रदेश के उन्नाव में आकर बस गया था। आप हिंदी के लेखक और स्तंभकार के रूप में जाने जाते थे। आप गत चार दशकों से संचेतना पत्रिका का संपादन कर रहे थे।

Dr. Mahip Singhडॉ० महीप सिंह ने लगभग 125 कहानियां लिखीं। ‘काला बाप गोरा बाप', ‘पानी और पुल', ‘सहमे हुए', ‘लय', ‘धूप की उंगलियों के निशान', ‘दिशांतर और कितने सैलाब' जैसी कहानियां हिन्दी कहानी के मील के पत्थर हैं। उनके उपन्यास ‘यह भी नहीं' और ‘अभी शेष है' काफी चर्चित रहे। आपका उपन्यास पंजाबी, गुजराती, मलयालम व अँग्रेज़ी में अनुदित हुआ।

आपने अनेक कहानी-संग्रह लिखे जिनमें 'सुबह के फूल', 'उजाले के उल्लू', 'घिराव', 'कुछ और कितना', 'मेरी प्रिय कहानियाँ', 'समग्र कहानियाँ', 'चर्चित कहानियाँ', 'कितने सम्बंध', 'इक्यावन कहानियाँ', 'धूप की उंगलियों के निशान सम्मिलित हैं।

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश